मार दिए या मर गए वो, कुछ ऐसे ही थे रिश्ते
चलते थे जो संग हमारे, वो थे नीयत के सस्ते
हालचाल पूछने का भी, शिष्टाचार हुआ खत्म
नहीं निभाते अब, खैरियत पूछने की भी रस्म
ना जाने कौनसे जुनून में, जिन्दगी जिए जाते
हम थे जिनके मददगार, वो ही हमको भुलाते
लोगों की अनदेखी ने, मेरे दिल को तोड़ दिया
अब तो किसी से, आशा करना ही छोड़ दिया
अगर मिल जाए वो, जीवन में किसी मोड़ पर
उनसे ना पूछेंगे कि, क्यों चले गए थे छोड़कर
अपनी मर्जी के सब मालिक, जो चाहे सो करे
कैसे जीवन जीना है, आओ हम खुद तय करें
हालात हर तरफ ऐसे ही, मत करो अफसोस
अपना ही नुकसान है, यदि मन में रखोगे रोष
अपने जीवन की सब, खुशियां हैं अपने हाथ
मिल गया जब हमें, स्वयं परमपिता का साथ