उड़ा ले मौज ऐ जिंदगी
आज वक़्त तुम्हारा है
तूने समझा जिसे एक पागल
वो भी तो हिस्सा तुम्हारा है
दिल की बातें,लेकिन जुबां की ख़ामोशी,
आँखो में आँसू, पर होंठो पर हँसी,
उभरे हुए ज़ख्म, बिखरे हुए सपने
दबा दबा सा दर्द,तो उलझे हुए सब किस्से....
चींख ही तो है कहीं इंसान की
तो कहीं जानवर,तो पेड़, परिंदे,
सुनसान से रास्ता,वीराना सा शहर
उजड़ा आशियाना, तो बिखरी हुई कलियां
सब चींख रहे है,
सुन कौन रहा है इसे ये हवा,जो आज यहाँ कल वहाँ...
या ये चाँद,सूरज जो सिर्फ दूर से ही
देखकर हँसे जा रहे हमारी बेबसी पर...
तो मौन ही हो जाती हूँ मैं,हमेशा के लिए
इस खूबसूरत संसार से,इस रंग बिरंगे
रंगों को बदल देती हूँ फिर किसी स्याह
चादर में...जैसे चाँदनी रात ने ओढ़ लिया
अमावस का कफ़न..
मैं एक बूंद थी,तुमने मुझे सागर बनाया
मैं वक़्त से सिमटती गयी,वक़्त मेरे अंदर
सिमटता गया..और समा गया पूरी तरह
मुझमें..अब टिक-टिक की आवाज
गूँजती रहती है सुबह शाम किसी खतरे
का अलार्म की तरह,जो ना चैन से जीने
देती है ना मरने देती है...
कितना बेबस होता है ना वो इंसान जो
रो कर कहता है,आँखो में दर्द क्यों हो रहा
और हँस कर कहता है,की आँखों मे खुशी
के आँसू हैं...
बह जाने ही दो इसे,ठहर गए तो
फिर इसमें यादें तैरने लगेंगी,और
हलचल मच जायेंगी ख़ामोश लहरों में....