अपने ज़िन्दगी क़ी कहानी मै लिखता रहा ,
बिना मोल अपने शहर में बिकता रहा
लिखना तो चाहता था बहुत कुछ
लेकिन ज़मीर मेरा मुझे खिचता रहा
था दर्द तो बहुत पर मुस्कुराता रहा ,
पर अन्दर ही अन्दर दर्द में चीखता रहा
मैंने भी अपनी एक बगिया सजाई थी,
जिसे अपने प्यार से मै सिचता रहा
ठोकर तो खाये मैंने ज़माने में बहुत
*लेकिन ज़िन्दगी से हर पल सीखता रहा...!!!*