विश्वास और भरोसे दुनिया से, गुम होते जा रहे
वहम के बादल आजकल, चारों और मंडरा रहे
हर कोई जीता यहां, एक दूसरे पर वहम करके
हर इंसान रहता दुनिया में, एक दूसरे से डर के
केवल शक़ के कारण, कैसा बन गया ये संसार
एक की बात दूसरे को, अब होती नहीं स्वीकार
दिल की सच्चाई सफाई, साबित नहीं हो पाती
दूध नहीं बिक पाता, लेकिन शराब बिक जाती
कितना भी चिल्लाए कोई, करता रहे फरियाद
हासिल ना होती यहां, किसी को अपनी मुराद
दिल ही साफ नहीं अगर, तो दोषी क्यों है खुदा
मन के मैलेपन ने किया, सुकून को हमसे जुदा
झांककर अपने दिल में, कर लो इसकी सफाई
झूठ और फरेब निकालकर, अपनाओ सच्चाई
सच्चाई पर खेलो सदा, अपने जीवन की बाजी
क्योंकि दिल साफ हो तो, साहब होता है राजी