20 जनवरी 2022
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वाह रे पैसा! तेरे कितने नाम?मंदिर मे दिया जाये तोचढ़ावा स्कुल में
दुनिया का बोझ अपने सर से उतार दे सामर्थ को सौप सब तू उसका प्यार ले प्रभू प्रेम मे मन मेरे &n
सत्य सनातन धर्म की जय हो, जैहादीयो का नाश हो एक अकेला पार्थ खडा है
*"सदा न संग सहेलियाँ, सदा न राजा देश।**सदा न जुग में जीवणा, सदा न काला केश।**सदा न फूलै केतकी, सदा न सावन होय।**सदा न विपदा रह सके, सदा न सुख भी कोय।**सदा न मौज बसन्त री, सदा न ग्रीष्म भाण।**सदा न जोव
*गुज़र* रही है *ज़िन्दगी*ऐसे *मुकाम* से,*अपने* भी *दूर* हो जाते हैं,ज़रा से *ज़ुकाम* से।*तमाम क़ायनात में एक क़ातिल बीमारी की हवा हो गई,* *वक़्त ने कैसा सितम ढा़या कि "दूरियाँ" ही 'दवा' हो गई...*
*वो भी क्या समय था ?* *जब किसी को स्टेशन* *छोड़ने जाओ तो भी* *आंख नम हो जाती थी*  
कुछ उलझने है राहो में,कुछ कोशिशें बेहिसाब,बस इसी का नाम ज़िन्दगी,चलते रहीए जनाब...!जीवन की भाग-दौड़ में बहुत कुछ ऐसा था जिसे हमने जाने दिया...बाद में पता चला कि जो जाने दिया वही जीवन था...!! सबसे
कहाँ गुम हो गएसंयुक्त परिवार एक वो दौर थाजब पति अपनी भाभी को आवाज़ लगाकरघर आने की खबर अपनी पत्नी को देता था। पत्नी की छनकती पायल
जय श्री राधे.... राधे राधे जपले मनवादुःख मिट जायेंगेराधा राधा सुनकेकान्हा दौड़े आएंगेप्यारे राधा रमणतुम्हारे चरणों मेंरम जाऊँब्रज की लता पता मेंमैं राधे राधे गाऊँमैं राधे राधे गाऊँमैं श्यामा श्या
पाने को कुछ नही ,ले जाने को कुछ नही ,उड़ जायेंगे एक दिन•••तस्वीर से रंगो की तरह !हम वक्त की टहनी पर•••बैठे है परिंदों की तरह!!खटखटाते रहिए दरवाजा•••एक दूसरे के मन का ,मुलाकाते ना सही ,आहट आती रहनी चाह
अपने ज़िन्दगी क़ी कहानी मै लिखता रहा ,बिना मोल अपने शहर में बिकता रहालिखना तो चाहता था बहुत कुछ लेकिन ज़मीर मेरा मुझे खिचता रहाथा दर्द तो बहुत पर मुस्कुराता रहा ,पर अन्दर ही अन्दर दर्द में चीखता
*नशा*(बीडी-तंबाकू-शराब) *नशा* लीवर को नष्ट कर देता है। *नशा* कैंसर का प्रमुख कारण है। *नशा* हार्ट अटैक का कारण। *नशा* बुद्धि का नाश करता है। *नशा* गृह क्लेश का कारण। *नशा
बुजुर्ग पिताजी जिद कर रहे थे कि, उनकी चारपाई बाहर बरामदे में डाल दी जाये। बेटा परेशान था।बहू बड़बड़ा रही थी..... कोई बुजुर्गों को अलग कमरा नही देता। हमने दूसरी मंजिल पर कमरा दिया.... AC TV FRIDGE सब स
अक्ल बाटने लगे विधाता, लंबी लगी कतारी।सभी आदमी खड़े हुए थे, कहीं नहीं थी नारी।।सभी नारियाँ कहाँ रह गई, &nbs
"जीवन का एक रहस्य...रास्ते पर गति की सीमा है।बैंक में पैसों की सीमा है।परीक्षा में समय की सीमा है।परंतु हमारी सोच की कोई सीमा नहीं है,इसलिए सदा श्रेष्ठ सोचें और श्रेष्ठ पाएं| जो बदला जा सके , उसे
श्रीमन नारायण नारायण नारायण ।।लख चौरासी घूम के तूने ये मानव तन पाया,रहा भटकता माया में तूनेकभी न हरी गुण गाया,भज ले नारायण, नारायण नारायण ।।वेद पुरान भगवत गीताआतम ज्ञान सिखाये ,रामायण ज
सोच बदलो,जिंदगी बदलोकुछ करना है, तो डटकर चल। थोड़ा दुनियां से हटकर चल।लक पर तो सभी चल लेते है, कभी इतिहास को पलटकर चल।बिना काम के मुकाम कैसा? &n
रिश्ता निभा लीजिए.न रूठिए अब किसी से,न नाराज कीजिए अपनों को।कर रही आपदा तांडव, इस धरा पे।पल पल में बिछड़ रहे, अपने अपनों से।।न जाने कौन सा संदेश, आखिरी होन जाने कौन सा शब्द, आखिरी
क्या भरोसा है इस ज़िंदगी कासाथ देती नहीं यह किसी कासांस रुक जाएगी चलते चलते,शमा बुज जाएगी जलते जलते ।दम निकल जायेगा रौशनी का ॥क्या भरोसा है इस ज़िंदगी कासाथ देती नहीं यह किसी काहम रहे ना मोहोबत रहेगी,
समय को नमन,समय बड़ा बलवानसदा न संग सहेलियाँ, सदा न राजा देश ।सदा न जुग में जीवणा, सदा न काला केश ।।सदा न फूलै केतकी, सदा न सावन होय ।सदा
खट्टी मीठी यादे यादें खट्टी मीठी देकर साल ये बीता जाता है कुछ भावुक पल ही हम सबको याद हमेशा रह जाता है पाया था जो दर्द यहां कुछ दर्द भूलाता जाता है कुछ अपने लोगों को
मित्र तुम श्री रामचरितमानस जरूर पढ़ना।।..जीवन के अनुबंधों को,तिलांजलि संबंधों को,टूटे मन के तारो को,फिर से नई कड़ी गढ़ना,मित्र तुम श्री रामचरितमानस पढ़ना।।बेटी का धर्म निभाने को,पत्नी का मर्म सिखाने क
फिर घमंड कैसाघी का एक लोटा,लकड़ियों का ढेर,कुछ मिनटों में राख.....बस इतनी-सी है आदमी की औकात !एक बूढ़ा बाप शाम को मर गया, अपनी सारी ज़िन्दगी,परिवार के नाम कर गया,कहीं रोने की सुगबु
लो नया साल लग रहा हैउम्र की डोर से फिर एक मोती झड़ रहा है....तारीख़ों के जीने से दिसम्बर फिर उतर रहा है..कुछ चेहरे घटे,चंद यादें जुड़ी गए वक़्त में....उम्र का पंछी नित दूर और दूर न
हवा लगी पश्चिम की, सारे कुप्पा बनकर फूल गए !ईस्वी सन तो याद रहा, पर अपना संवत्सर भूल गए !!चारों तरफ नए साल का, ऐसा मचा है हो-हल्ला !बेगानी शादी में नाचे, जैसे कोई दीवाना !!धरती ठिठुर रही सर्दी स
कितना अजीब है ना, दिसंबर और जनवरी का रिश्ता?जैसे पुरानी यादों और नए वादों का किस्सा...दोनों काफ़ी नाज़ुक हैंदोनो में गहराई है,दोनों वक़्त के राही हैं, दोनों ने ठोकर खायी है...यूँ तो दोनों का है
ये नव वर्ष हमें स्वीकार नहींहै अपना ये त्यौहार नहींहै अपनी ये तो रीत नहींहै अपना ये व्यवहार नहींधरा ठिठुरती है सर्दी सेआकाश में कोहरा गहरा हैबाग़ बाज़ारों की सरहद परसर्द हवा का पहरा हैसूना है प्रकृति
"जाने क्यूंअब शर्म से, चेहरे गुलाब नही होते।जाने क्यूंअब मस्त मौला मिजाज नही होते।पहले बता दिया करते थे, दिल की बातें।जाने क्यूंअब चेहरे, खुली किताब नही होते।सुना हैबिन कहे दिल की बात&n
उड़ा ले मौज ऐ जिंदगीआज वक़्त तुम्हारा हैतूने समझा जिसे एक पागलवो भी तो हिस्सा तुम्हारा हैदिल की बातें,लेकिन जुबां की ख़ामोशी,आँखो में आँसू, पर होंठो पर हँसी,उभरे हुए ज़ख्म, बिखरे हुए सपनेदबा दबा सा दर्द,त
प्रकृति में सब कुछ नाच रहा है गा रहा है, अपनी जगह खुश है संतुष्ट है , तृप्त है ।पंछी गा रहे है , नदियां लहरा रहीं है , पेड़ पौधे झूम रहे है , तारे आंखे झपका रहे हैं जानवर खेल रहे हैं ; सब खुश हैं।पर इ
आशा पर कवितानिराशा के दीप बुझाकरआशाओं के दीप जलायेंदसों दिशा में फैले तम को मिलकर कोसो दूर भागायें,स्नेहरूपी दीप जलाकरजीवन मे उजियारा लायेंनिराशा के दीप बुझाकरआशाओं के दीप जलायें।मिटाकर मन के अंधकार क
विश्वास और भरोसे दुनिया से, गुम होते जा रहेवहम के बादल आजकल, चारों और मंडरा रहेहर कोई जीता यहां, एक दूसरे पर वहम करकेहर इंसान रहता दुनिया में, एक दूसरे से डर केकेवल शक़ के कारण, कैसा बन गया ये संसारएक
उसने कहा था मैं कभी भी, तेरे पास आ जाऊंगीतुम्हारा जीवन एक क्षण में, समाप्त कर जाऊंगीसंसार कहता मौत मुझे, काम यही है केवल मेरामेरे आगे नहीं चलेगा, तेरे तन पर कभी वश तेरादबे पांव और बिना बताए, आती हूँ स
मार दिए या मर गए वो, कुछ ऐसे ही थे रिश्तेचलते थे जो संग हमारे, वो थे नीयत के सस्तेहालचाल पूछने का भी, शिष्टाचार हुआ खत्मनहीं निभाते अब, खैरियत पूछने की भी रस्मना जाने कौनसे जुनून में, जिन्दगी जिए जाते
जन्म लेते ही जीवन की, शुरुआत हो जातीचाहे अनचाहे कुछ घड़ियां, जीवन में आतीपसन्द हो या नापसन्द, वो याद बहुत आतीयाद कोई भी आए, किंतु रुलाकर ही जातीबीती बातें भूलकर, केवल वर्तमान में जीनाजीवन रूपी सोमरस को
यतीम हूँ तो क्या डर जाऊँगा,तपने से मैं और निखर जाऊँगा।जिनता चोट पड़े हर एक चोट सहूँगा,कोई फिर स्पर्श करें तो मैं पत्थर कहलाऊंगा। आंधिया है तो क्या घबरा जाऊँगा,लड़ता रहूंगा फिर संघर्ष करना सिख जाऊँग
प्रथम महीना चैत से गिन।राम जनम का जिसमें दिन।। द्वितीय माह आया वैशाख।वैसाखी पंचनद की साख।। ज्येष्ठ मास को जान तीसरा।अब तो जाड़ा सबको बिसरा।। चौथा मास आया आषाढ़नदियों में आती है बाढ़।।&n
पता-ही-नहीं-चलाअरे यारों कब तीस चालीस 50 के हो गये पता ही नहीं चला। कैसे कटा 21 से 31,41, 51 तक का सफ़र&nb
ऐसे है मेरे राम ह्रदय कमल नयन कमल सुमुख कमल चरण कमल कमल की कुंज तेज कुंज &n
खेल समय का कैसा हैक्या मन की खींचा तानी हैएक पल में बचपन बीता,दो पल रही जवानी हैदोनों हाथों भर भर पूरा,आस का थैला खाली हैदुख की बरफ पिघलती धीरे,सुख सर सर बहता पानी हैआंसू , प्यार, हसीं, दुत्कारजीवन बा
मैं तुमसे बेहतर लिखता हूं पर जज़्बात तुम्हारे अच्छे हैंमैं तुमसे बेहतर दिखता हूं पर अदा तुम्हारी अच्छी हैमैं खुश हरदम रहता हूं पर मुस्कान तुम्
भारतीय सभ्यता के नाम.. हमारे द्वारा ही हमारी भारतीय सभ्यता का साथ छूट रहा हैगाय हमारी काऊ बन गयी, &nbs
तीन पहर तो बीत गये,बस एक पहर ही बाकी है।जीवन हाथों से फि जयसल गया,बस खाली मुट्ठी बाकी है।सब कुछ पाया इस जीवन में,फिर भी इच्छाएं बाकी हैं*दुनिया से हमने क्या पाया,यह लेखा - जोखा बहुत हुआ,इस जग ने हमसे
टूटे न कोई और सितारा, आओ प्रार्थना करें. बिछड़े न कोई हमसे हमारा आओ प्रार्थना करेंतूफाँ है तेज़, कश्तियाँ सबकी भँवर में हैं,मिल जाये हर किसी को किनारा,आओ प्रार्थना करें शरारत किसी
कितनी भी महँगी गाड़ी में घूम लो, अंतिम सफर तो बाँस से बनी अर्थी पर ही करना पड़ेगा .!! यही जीवन का सत्य है ...!! पानी अपना पूरा जीवन देकर पेड़ को बड़ा करता है.. इसीलिए शायद पानी लकड़ी को डूब
जिन्दगी तू भी कच्ची-पेन्सिल की तरह है, हर रोज छोटी होती जा रही है,,!!चेहरे की हँसी से गम को भुला दो, कम बोलो पर सब- कुछ बता दो, खुद ना
मौत का तान्ड़व चल रहा है,दोस्तो अब रूठना,लड़ना,गुस्सा बन्द कीजिये , पता नहीं कौनसा Msg,Call या मुलाकात आखिरी हो,, !!!सम्बंधों के ताले को क्रोध के हथोड़े से नहीँ,
जिन्दगी की दास्तां...!जो पीछे मुड़ के देखा तो,कुछ यादें बुला रही थी।अब तक के सफर की,सारी बातें बता रही थी।।कितनी मुश्किल राहें थीं, हम क्या क्या कर गए।एक सुकून की तलाश में,कहां कहां से गुजर गए।।कि
जाग रे मनव अब तो जागजाग रे मनव, जाग रहा संसार, भाग रे मनव भाग रहा संसार। जो सोता है वह खोता है यहां, जागे हुए का लगता बेड़ा पार। जाग रे मनव अब तो जाग अगर करोगे ईश्वर की भक्ति, तुमको मिलेगी अद्भु
चलता फिरता एक खिलौना है जीवन क्या है दो आंखों में एक से ह
भोर भई उठ जाग मुसाफिर बहुत दूर है जाना रे अन्जानी राहों का सफर है और उस पे वीराना है चक्का चौंध में अटका मनवा  
बस इतनी सी हैं हमारी औकात...फिर घमंड कैसाघी का एक लोटा,लकड़ियों का ढेर,कुछ मिनटों में राख.....बस इतनी-सी है हमारी औकात...एक बूढ़ा बाप शाम को मर गया, अपनी सारी ज़िन्दगी,परिवार के नाम
पूरे जग को अपना कहते ,हम सबको अपनाने वालेहम त्याग धर्म के पोषक है ,हम क्षमादान करने वालेहम गीता पढ़ने वाले है,हम रामायण के गायक हैश्री राम प्रभु के वंशज हम,केशव से अपने नायक हैहम करते है अनुनय पह
मैं " पुरुष " हूँ...मैं भी घुटता हूँ , पिसता हूँटूटता हूँ , बिखरता हूँभीतर ही भीतररो नही पाताकह नही पातापत्थर हो चुकातरस जाता हूँ पिघलने कोक्योंकि मैं पुरुष हूँ..मैं भी सताया जाता हूँजला दिया जाता हूँ
तीन महीने के बच्चे को दाई के पास रखकर जॉब पर जाने वाली माँ को
श्याम तुम्हे देखूँ घनश्याम तुम्हे बस, इतनी तमन्ना है श्याम तुम्हे देखूँ, घनश्याम तुम्हे देखूँ...शर मुकुट सुहाना हो, माथे तिलक निराला हो गल मोतियन माला हो...श्याम तुम्हे द
अयोध्या फिर बनी दुल्हन ।पल आनंद के आये हैं।।ये धरती फिर बनी मधुवन।चरण श्री राम लाये हैं।।बजे शहनाईयो की धुन।मगन मन मुस्कराए हैं।।बड़ी शुभ है ये घड़ियां।प्रभु घर में पधारे है।।भरो नैनो में अब खुशियां।रा
वाह वाह रे समाज तन ढँकने को कपड़े न थे, फिर भी लोग तन ढँकने का प्रयास करते थे ...! आज क
कैसे कटा 21 से 60तक का यह सफ़र,पता ही नहीं चला ।क्या पाया, क्या खोया,क्यों खोया,पता ही नहीं चला !बीता बचपन,गई जवानीकब आया बुढ़ापा,पता ही नहीं चला ।कल बेटे थे,कब ससुर हो गये, पता ही नहीं चला
घ़ना दिन सो लिओ रे अब जाग मुसाफिर जाग तू जहा आयो मां की गोद मे जततन लाड़ लडायो
वो पिता होता हैहर मुश्किल को जो सहता है और कुछ भी न कहता हैवोपिता होता हैखिलौने जो लाता है,,बच्चो को कपड़े नए जो पहनाता हैवो पिता होता हैखुद के होते है जूते फटे औरलिबास पुराना जिसकेतन पर होता
एक रंगीन किताब है ..! फर्क बस इतना है कि, कोई हर पन्ने को दिल से पढ़ रहा है; और कोई दिल रखने के लिए पन्ने पलट रहा है। हर पल में प्यार है हर लम्हे में ख़ुशी है ..! 
जगत में जो ईश्वर कहलायाउस कृष्ण की आधार हैं राधा वृंदावन की बहार हैं राधामधुवन की झंकार हैं राधा हैं राधा सबमें थोड़ी थोड़ीसावन की मल्हार हैं राधा हैं राधा बिना जी
जय जय हे जगत जननी सीता माता जय जय हे जगत नारायणी सीता माता, झोली भर के जाता, जो तेरे दर पे आता। तू सुकुमारी जनक दुलारी मिथिला कुमारी, सारा संसार तेरी महिमा के गुण है गाता। जय जय हे जगत जनन
जय श्री रामह्रदय कमल, नयन कमलसुमुख कमल, चरण कमलकमल के कुञ्ज, तेज कुञ्जछवि ललित ललामऐसे हैं मेरे राम, ऐसे हैं मेरे राम विनय भरा ह्रदय करें सदा जिसे प्रणामऐसे हैं मेरे राम, ऐसे हैं मेरे रामऐसे हैं