हवा लगी पश्चिम की, सारे कुप्पा बनकर फूल गए !
ईस्वी सन तो याद रहा, पर अपना संवत्सर भूल गए !!
चारों तरफ नए साल का, ऐसा मचा है हो-हल्ला !
बेगानी शादी में नाचे, जैसे कोई दीवाना !!
धरती ठिठुर रही सर्दी से, घना कुहासा छाया है !
कैसा ये नववर्ष है, जिससे सूरज भी शरमाया है !!
सून है पेड़ों की डालें, फूल नहीं हैं उपवन में !
पर्वत ढके बर्फ से सारे, रंग कहां है जीवन में !!
बाट जोह रही सारी प्रकृति, आतुरता से फागुन का !
जैसे रस्ता देख रही हो, सजनी अपने साजन का !!
अभी ना उल्लासित हो इतने, आई अभी बहार नहीं !
हम अपना नववर्ष मनाएंगे, न्यू ईयर हमें स्वीकार नहीं !!
लिए बहारें आँचल में, जब चैत्र प्रतिपदा आएगी !
फूलों का श्रृंगार करके, धरती दुल्हन बन जाएगी !!
मौसम बड़ा सुहाना होगा, दिल सबके खिल जाएँगे !
झूमेंगी फसलें खेतों में, हम गीत खुशी के गाएँगे !!
उठो खुद को पहचानो, यूँ कबतक सोते रहोगे तुम !
चिन्ह गुलामी के कंधों पर, कबतक ढोते रहोगे तुम !!
अपनी समृद्ध परंपराओं का, आओ मिलकर मान बढ़ाएंगे !
आर्यावर्त के वासी हैं हम, अब अपना नववर्ष मनाएंगे !!!
न्यू ईयर हमें स्वीकार नहीं