अब इसमें क्या प्लान बी हो सकता है? शब्द तो चला गया ना?" ऋषभ ने हैरानी से पूछा तो अंकिश मुस्कुराते हुए बोला, " शब्द गया नहीं है अंकल! मैंने उसे जाने दिया है l वो क्या है ना कि कभी कभी कुछ जीतने के लिए कुछ हारना भी पड़ता है और हार कर जीतने वाले को... "
"बाजीगर कहते हैं" सब एक साथ बोल पड़े l
"अंकिश कहते हैं l यार कभी तो क्रेडिट दिया करो मुझे?" अंकिश ने मासूमियत से कहा तो सब हंसने लगे और वाणी के उदास चेहरे पर भी मुस्कान आ गई l
"अरे बाबा! सारा क्रेडिट तुझे ही मिलेगा पर तू पहले प्लान तो बता?" ऋषभ ने हंसते हुए पूछा तो अंकिश बड़ी बेफिक्री से बोला, " प्लान बहुत सिंपल है अंकल! आपको बस अविनाश को कॉल करके यहां बुलाना है l बाकी हम दोनों संभाल लेंगे l"
ऋषभ ने अविनाश को कॉल कर दिया और थोड़ी ही देर में अविनाश वहां आ गया l उसके आते ही अंकिश ने उसे सारा प्लान समझा दिया l
" तू समझ गया ना तुझे क्या करना है?" अंकिश ने पूछा तो अविनाश डरते हुए बोला, " समझ तो गया हूं पर थोड़ा डर लग रहा है l अगर शब्द को बुरा लगा तो? "
"तू उसकी चिंता मत कर! मैं सब संभाल लूंगा" अंकिश ने मुस्कुराते हुए कहा l
शब्द अपने कमरे में लैपटॉप पर बिजी था और वाणी बेड पर बैठकर अनोखी के साथ खेल रही थी l खेलते खेलते अनोखी ने अपना खिलौना दूर जमीन पर फेंक दिया और फिर रोने लगी l वाणी ने उसे गोद में लेकर उसे फुसलाने की कोशिश की पर अनोखी अभी भी रोए जा रही थी l वाणी ने उसे दूसरा खिलौना दिया तो अनोखी ने वो खिलौना भी फेंक दिया और रोकर पहले वाले खिलौने की तरफ इशारा करने लगी l वाणी समझ गई कि अनोखी को अपना फेवरेट खिलौना ही चाहिए इसलिए वो हाथ बढ़ाकर उसे उठाने की कोशिश करने लगी पर वो खिलौना उसकी बहुत से बहुत दूर था l वाणी थोड़ा सा और झुकने लगी और अचानक उसका संतुलन बिगड़ गया l वो गिरने लगी तभी शब्द ने आकर उसे पकड़ लिया और गुस्से मे उसे घूरते बोला, "पैर तोड़ना तुम्हारी हॉबी है क्या?"
"नहीं.. वो.. मैं.. तो.." वाणी ने डरते हुए कहा तो शब्द चिल्लाकर बोला, "क्या मैं तो? एक पैर तो तोड़ ही लिया है l दूसरा भी तोड़ना है क्या?"
" आप सुनिए तो" वाणी ने कहा तो शब्द बिना कुछ सुने फिर से उस पर बरसने लगा, "कुछ नहीं सुनना मुझे? चुप करके इधर बैठो! बार-बार बचाने नहीं आऊंगा मैं"
ये कहते हुए शब्द गुस्से में जाकर अपनी जगह बैठ गया और अनोखी फिर से रोने लगी l वाणी फिर से खिलौना उठाने की कोशिश करने लगी और इस बार भी वो गिरने ही वाली थी कि शब्द ने आकर उसे पकड़ लिया पर इस बार शब्द बहुत गुस्से में था l
" तुम पागल वागल हो क्या? एक बार में बात समझ में नहीं आती? " शब्द ने चिल्लाकर कहा पर इस बार वाणी को उसकी डांट के दुख से ज्यादा उसके आने की खुशी थी इसलिए वो एक ही सांस में बोल पड़ी, "वो अनोखी रो रही थी तो मैं उसका खिलौना उठा रही थी l"
" तो मुझे नहीं बोल पा रही थी? मैं दे देता उठा कर" शब्द ने उसे घूरते हुए कहा तो वाणी मुंह बनाकर बोली, "आप कुछ कर रहे थे l अगर डिस्टर्ब होते तो मुझे ही डांटते"
"डिस्टर्ब तो तुम ऑलरेडी कर ही चुकी हो! वो भी दो-दो बार" यए कहते हुए शब्द ने अनोखी का खिलौना उठाकर उसे पकड़ा दिया फिर जाकर अपना काम करने लगा l वाणी उसे देखकर मुस्कुराने लगी तब तक तृषा और अंकिश अविनाश को लेकर कमरे में आ गए l
" शब्द तू तो जानता ही होगा इसे? ये अविनाश है l" अंकिश ने मुस्कुराकर परिचय कराया तो शब्द औपचारिकता वश उससे हाथ मिलाते हुए बोला, "कैसा है तू?"
"ठीक हूं! तू कैसा है" अविनाश से पूछा तो शब्द झूठी मुस्कान दिखाते हुए बोला, "मैं भी ठीक हूं"
"अरे तू इसे छोड़ और इधर आ" ये हैँ वाणी भाभी! तुझे इनका ही ख्याल रखना है l" अंकिश ने वाणी से अविनाश का परिचय कराते हुए कहा l
अविनाश मुस्कुराकर वाणी से बात करने लगा और ये देखकर शब्द को बहुत जलन होने लगी l शब्द फिर से लैपटॉप पर बैठकर अपना काम करने लगा l अविनाश और वाणी हंस कर बातें कर रहे थे और शब्द लैपटॉप पर काम करने के बहाने उन्हें घूर रहा था l उसके भाव से साफ साफ पता चल रहा था कि उसे बहुत जलन हो रही है l वाणी भी चुपके-चुपके शब्द को देख रही थी और उसे यूँ जलता देख मन ही मन खुश भी हो रही थी l
"देखो कैसे हस हस के बातें कर रही है उससे? मेरे सामने तो केवल रोती रहती है l 1 मिनट.. पर मैं जेलस क्यों हो रहा हूं?मुझे क्या लेना देना किसी से भी बात करें? लेकिन ये बीवी तो मेरी है ना? तो मैं ही डिसाइड करूंगा कि किससे बात करनी है l पर कौन सी बीवी? मैं तो बीवी मानता ही नहीं हूं इसे?हाँ मैं नहीं मानता इसे अपनी बीवी! पर इसका पैर तो मेरी वजह से टूटा है ना तो ये मेरी जिम्मेदारी है l हां ये ठीक है l ये मेरी ज़िम्मेदारी है इसलिए मुझे ही इसका ख्याल रखना है l" शब्द अपनी भावनाओं का हिसाब किताब लगा ही रहा था कि तब तक उसकी नजर फिर से वाणी पर पड़ी l वो तृषा के कान में कुछ कह रही थी l
"अविनाश को वाणी को वाशरूम यूज करना है l तुम प्लीज उसे व्हील चेयर पर बैठा दोगे l" तृषा को सुनाते हुए कहा तो अविनाश ने एक बार शब्द की तरफ देखा l
शब्द उसे गुस्से से घूर रहा था l शब्द को गुस्से में देख अविनाश मन ही मन सोचने लगा, "ये अंकिश मरवायेगा मुझे l हे भगवान बचा लो! शब्द के सामने उसकी बीवी को हाथ कैसे लगाऊं मैं? पर मैं तो नर्स हूं l मेरा तो काम ही मरीज़ो की मदद करना है और इस टाइम ये मरीज़ हि तो है l"
"क्यों नहीं! आफ्टर आल मैं यहां इनकी देखभाल करने ही तो आया हूं l" अविनाश ने डरते हुए कहा तो वाणी मन ही मन सोचने लगी, "हे भगवान प्लीज! शब्द ही आकर मुझे उठाएं l मैं तृषा और अंकिश भैया के प्लान का हिस्सा तो बन गई हूं पर मैं इस प्लान में बिल्कुल भी कंफर्टेबल नहीं हूं l"
अविनाश डरते हुए वाणी को उठाने लगा पर तब तक शब्द वहां आ गया और उसे घूरते हुए बोला, " अभी मैं यहां हूं ना तो मैं लेकर जाता हूं l जब मैं यहां ना होउ,तब तुम मदद करना ओके!"
ये कहते हुए शब्द ने वाणी को गोद में उठा लिया और उसे लेकर वाशरूम चला गया l उसके जाते ही अंकिश और तृषा हंसने लगे और अविनाश ने एक चैन की सांस ली l
"थैंक्स गॉड! बच गया वरना मुझे तो लगने ही लगा था कि ये मेरी जिंदगी का आखरी दिन है l" अविनाश ने अपने दिल पर हाथ रखकर सांस लेते हुए कहा तो अंकिश हंसते हुए बोला, " यार तू इतना मत डरा कर! इतना डरेगा तो कैसे चलेगा? "
इससे पहले अविनाश कुछ जवाब देता शब्द वहां आ गया और उसे देखते ही सब इधर-उधर की बातें करने लगे l
शब्द जाकर फिर से अपनी जगह बैठ कर काम करने लगा l थोड़ी देर बाद वाणी की आवाज आई, "हो गया"
"आ रहा हूं" ये कहते हुए शब्द वाणी को लेने चला गया तभी अंकिश बोल पड़ा, " आई थिंक आज के लिए इतना काफी है l अब हमें यहां से चलना चाहिए l"
" हां! बाकी का काम कल सुबह करेंगे l" तृषा ने मुस्कुरा कर कहा और फिर सारे कमरे से बाहर चले गए l शब्द ने वाणी को लाकर बेड पर बैठा दिया और फिर दवाइयों का डब्बा खोलकर उसे शाम की दवाई पकड़ाते हुए बोला, " तुम ये मत समझना कि मेरे दिल में तुम्हारे लिए जगह बनने लगी है l वो दरअसल उस दिन शावर जेल गलती से मुझसे ही गिर गया था l बस इसीलिए मैं ये सब कर रहा हूं l
" अच्छा! आप मुझे समझा रहे हैं या खुद को? अगर ऐसा ही था तो फिर उस दिन प्रणव को बाइक क्यों लाकर दी? मम्मी पापा से पहली बार बात क्यों की?आप कितना समझाएंगे खुद को शब्द? कितना झूठ बोलेंगे खुद से?" ये सोचकर वाणी मुस्कुराते हुए बोली, "मैं कुछ नहीं समझ रही हूं क्योंकि मुझे पता है कि ऐसा कभी नहीं होगा l आपके दिल में मेरे लिए कभी कोई जगह नहीं बनेगी l"
"गुड" शब्द ने बुझी हुई आवाज मे कहा और फिर मन ही मन सोचने लगा, " यार इसे तो कुछ भी महसूस ही नहीं हो रहा? ये क्या हो रहा है मेरे साथ?चलो अच्छा ही है इसे कुछ महसूस नहीं हो रहा क्योंकि कुछ होगा तो महसूस होगा ना? मैं तो अपनी जिम्मेदारी.."
अगले दिन शब्द ऑफिस के लिए तैयार हो रहा था और वाणी दवाई के असर की वजह से अभी तक सोई हुई थी l अचानक शब्द के हाथों से डियो गिर गया जिसकी आवाज सुनकर वाणी की नींद खुल गई l
" सॉरी सॉरी! वो गलती से गिर गया l तुम सो जाओ" शब्द ने वाणी की तरफ देखते हुए कहा तो वाणी घड़ी की तरफ देखते हुए बोली, " अरे इतनी देर हो गई आज तो? आपने मुझे जगाया क्यों नहीं? "
" तुम जगकर भी क्या कर लेती? तुम्हें तो चोट लगी है ना? तुम आराम करो! मैं मैनेज कर लूंगा l" शब्द ने कहा तो वाणी मुस्कुरा कर बोली, "ओके"
शब्द तैयार होकर नाश्ते के लिए जैसे ही कमरे से बाहर आया तो देखा अविनाश आ चुका था l उसे देखते ही शब्द मन ही मन सोचने लगा, "अरे मैं तो भूल ही गया! वाणी को भी तो तैयार करना है वरना ये अविनाश पहुंच जाएगा उसकी मदद करने के लिए"