"पर बेटा! ये तो तू होम डिलीवरी से भी भेज सकता था ना? इसके लिए इतना परेशान होने की क्या जरूरत थी?" मीरा ने खुश होकर कहा शब्द सोच में पड़ गया, "अब क्या बोलूं"
कुछ देर सोचने के बाद शब्द बहाना बनाते हुए बोला, "वो मम्मा .. दरअसल आज ना...तेरे हाथों के गोभी के पराठे खाने का बहुत मन कर रहा था l इसलिए आ गया"
शब्द ने पहले कभी झूठ नहीं बोला था इसलिए वो पहले ही झूठ में पकड़ा गया, " पर बेटा अभी तो तूने कहा कि तू लंच करके आ रहा है?मीरा ने कहा तो शब्द ने एक और झूठ बोल दिया, "मैंने कब कहा कि मैं लंच करके आ रहा हूं? मैंने तो सिर्फ ये कहा कि मैं लंच के लिए गया था पर फिर आपके हाथ के बने पराठे याद आ गए और मैं चला आया l प्लीज मम्मा! अब आप ये सवाल जवाब करना बंद करिए और जल्दी से मेरे लिए परांठे बनाइए l"
"अच्छा बाबा ठीक है! तू जाके फ्रेश हो जा? तब तक मैं पराठे बनाती हूं l" मीरा ने कहा तो शब्द झल्लाते हुए अपने कमरे में चला गया और सारे लोग हैरानी से एक दूसरे की तरफ देखने लगे l
" किसी ने चेक किया? आज सूरज पूरब से ही निकला है ना?" मीरा ने हंसते हुए कहा l
" सूरज तो पूरब से ही निकला है पर पता नहीं ये शेर आज भीगी बिल्ली कैसे बना हुआ है?" ऋषभ ने कहा तो तृषा हंसते हुए बोली, "वो इसलिए अंकल क्योंकि आपका शेर अब बहुत जल्द किसी के प्यार के जाल में कैद होने वाला है l"
शब्द जैसे ही कमरे में पहुंचा तो देखा वाणी बेड पर बैठकर अनोखी के साथ खेल रही थी l उस छोटी सी बच्ची के साथ वाणी भी बिल्कुल छोटी बच्ची बन गई थी l शब्द थोड़ी देर के लिए उसे यूं ही देखता रहा फिर अचानक से खुद को संभालते हुए अंदर आ गया l उसे देखते ही वाणी के चेहरे पर प्यारी सी मुस्कान आ गई l
" आप जल्दी आ गए आज" वाणी ने मुस्कुराते हुए कहा तो शब्द "हम्म्म..फोन पर बताया तो था" कहकर बाथरूम में चला गया और वाणी अनोखी को गोद में लेकर कबर्ड से उसके लिए कपड़े निकालने लगी l 5 मिनट बाद शब्द बाहर आया तो देखा कि वाणी अनोखी को गोद में लेकर उसके कपड़े ढूंढने की कोशिश कर रही है पर अनोखी बार-बार अपने हाथ पर चला कर उसका ध्यान भटका रही है l
" रहने दो मैं निकाल लूंगा l" शब्द ने कहा तो वाणी डरते हुए बोली, "नहीं मैं निकाल देती हूं l"
"हाँ! वो तो दिख ही रहा है मुझे कि अगले चार-पांच दिन में निकाल ही लोगी तुम?" शब्द ने मुँह बनाते हुए कहा तो वाणी उदास होकर पीछे हट गई और शब्द कपड़े लेकर फिर से बाथरूम में चला गया l
बाथरूम से निकलकर शब्द जैसे ही बाहर आया उसका पैर जमीन पर गिरे हुए अनोखी के खिलौने पर पड़ गया पर इससे पहले कि वो फिसल कर गिरता वाणी ने आकर उसे संभाल लिया और शब्द हैरानी भरी निगाहों से उसकी तरफ देखने लगा l
"आप ठीक तो है ना? " वाणी ने घबराकर पूछा तो शब्द उससे अपनी नजरें हटा कर संभलते हुए बोला, "हां मैं ठीक हूं l"
ये कहते हुए शब्द जैसे ही जाने लगा वाणी के मुंह से चीख निकल गई, "आह"
" व्हाट" शब्द ने उसे घूरते हुए पूछा l
"मेरे बाल" वाणी ने दर्द भरे स्वर मे कहा तो शब्द ने देखा कि वाणी के बाल उसकी शर्ट की बटन में उलझे हुए हैं l
"बांध के नहीं रख सकती?" शब्द ने उसे घूरते हुए कहा तो वाणी मासूम सा चेहरा बना कर बोली,'सॉरी! अबसे बांध कर रखूंगी l"
"अब मुँह बनाती रहोगी या निकालोगी भी? मेरे पास पूरा दिन नहीं है यहां खड़े होने के लिए" शब्द में खींझकर कहा तो वाणी दुखी स्वर में बोली, "जी निकालती हूं l"
"वाणी डरते हुए जल्दी से अपने बाल निकालने की कोशिश करने लगी और शब्द की नजर इधर उधर घूमने के बाद फिर से वाणी पर ही आकर रुक गई l वाणी बहुत घबराई हुई लग रही थी और उसके चेहरे से उसके अंदर का डर साफ साफ नजर आ रहा था l वो जल्द से जल्द बालों को बटन से आजाद करना चाहती थी क्योंकि वो शब्द के बर्ताव से अच्छी तरह वाकिफ थी l वो जानती थी कि अगर अगले 5 सेकंड में उसने बाल नहीं निकाले तो शब्द फिर से उस पर बरसना शुरू कर देगा और उसी डर और जल्दबाजी की वजह से उसके बाल निकलने की जगह और भी उलझते जा रहे थे l वाणी के चेहरे का रंग भी धीरे-धीरे उड़ता जा रहा था पर आज शब्द को उसका डरा हुआ चेहरा देखकर गुस्सा नहीं बल्कि अफसोस हो रहा था l उसे एहसास हो रहा था कि वाणी के इस बेवजह के डर की वजह उसका बेवजह का गुस्सा ही है जो वो हर वक्त उस पर करता रहता है l उसकी तकलीफ के पीछे वो बेवजह की सजा है जो वो हर रोज वाणी को देता रहता है l कितना प्यार करती है वो उससे? कितना ख्याल रखती है वो उसका? और बदले में वो उसे क्या देता है? ये डर... ये आंसू"
ये सारी बातें सोच कर शब्द के हाथ अपने हाथ ही बटन की तरफ बढ़ने लगे और वो भी वाणी के बाल निकालने की कोशिश करने लगा l वाणी ने हैरानी से उसकी तरफ देखते हुए अपने हाथ हटा लिये और शब्द ने धीरे-धीरे करके उसके बाल निकाल दिये l
" थैंक्यू" वाणी ने मुस्कुरा कर कहा तो शब्द भावहीन होकर बोला, "हम्म्म..पर अगली बार से बांध कर रखना"
शब्द कमरे से बाहर आ गया और उसे देखते ही मीरा उठकर उसके लिए परांठे सर्व करतें हुए बोली," चल आजा पराठे बन गए हैं l"
ये सुनकर शब्द सोच में पड़ गया, "यार ये मम्मा भी कितनी फास्ट है? अभी तो लंच किया था मैंने? पेट में एक परसेंट भी जगह नहीं है l कैसे खाऊंगा पराठे?"
" मम्मा इतनी जल्दी बन गए" शब्द ने एक बेवकूफी भरा सवाल किया तो मीरा मुस्कुरा कर बोली, " हां वो तुझे जोरों की भूख लगी थी ना इसलिए बहुत जल्दी-जल्दी बनाए l तू खा ना और बता कैसे बने हैँ? "
" हां मम्मा खाता हूं" कहकर शब्द ने परांठे को घूरते हुए बड़ी मुश्किल से एक टुकड़ा खाया और मीरा वही उसके पास वाली कुर्सी पर बैठ गई l
"कैसा है?" मीरा ने पूछा तो शब्द बुदबूदाया, "बहुत अच्छा है पर पेट ऑलरेडी इतना भरा है कि एक टुकड़ा भी जहर जैसा लग रहा है l"
"बहुत अच्छा है मां! आपके हाथों में तो जादू है" शब्द ने बड़ी मुश्किल से अपने चेहरे पर मुस्कान लाते हुए कहा तो मीरा खुश होकर बोल पड़ी, "तो जल्दी-जल्दी खा ना?"
मीरा उसे जबरदस्ती पराठे खिलाने लगे और तब तक वाणी वहाँ आ गई l शब्द के चेहरे के भावो से वो समझ गई कि शब्द को भूख नहीं लगी है l
" मम्मा बस! मेरा पेट भर गया" शब्द ने पेट पर हाथ रखते हुए कहा तो मीरा मुँह बनाते हुए बोली, " अरे अभी तो तूने आधा पराठा भी नहीं खाया? अभी कैसे भर गया? तू सच सच बता? पराठा अच्छा नहीं बना है क्या? "
"नहीं मम्मा! बहुत अच्छा बना है" शब्द ने कहा तो मीरा आंखें दिखाते हुए बोली, "फिर"
इससे पहले शब्द कुछ कहता वाणी बोल पड़ी, " मां! वो अनोखी को पता नहीं क्या हुआ है? बहुत रो रही है l तृषा के पास भी चुप नहीं हो रही l आप प्लीज आकर देखिए ना? इन्हें खाना मै सर्व कर दूंगी l"
" इतना क्यों रो रही है?मैं अभी जाकर देखती हूं l तू इसे अच्छे से खाना खिलाना l बहुत भूख लगी है इसे" वाणी को हिदायत देकर मीरा वहाँ से चली गई l मीरा के जाते ही वाणी ने शब्द की प्लेट से पराठे हटा दिए और पानी का गिलास उसकी तरफ बढ़ाते हुए किचन में चली गई l शब्द हैरानी से उसकी तरफ देखते हुए पानी पीने लगा और मन ही मन सोचने लगा, "इसे कैसे पता चला?"
" 6 महीनों से सिर्फ आप के एक्सप्रेशन देखकर आप को समझने की कोशिश कर रही हूं l अब तो आपको देखकर ही पता चल जाता है कि आपके दिमाग में किस वक्त क्या चल रहा है? " ये सोचकर वाणी मुस्कुराई और फिर अपना काम करने लगी l
रात के 10:00 बज रहे थे और शब्द फिर से लैपटॉप खोलकर अपने बेड पर बैठा हुआ था l उसके दिमाग में अभी तक सुबह की बातें घूम रही थी इसलिए वो अपने काम पर बिल्कुल भी ध्यान नहीं दे पा रहा था l
"ओ गॉड! ये क्या होता जा रहा है मुझे?क्यों मैं बार-बार वाणी के बारे में सोच रहा हूंl 6 महीने से वो मेरे साथ है l आज तक तो कभी मैंने उसे इतनी तवज्जो नहीं थी? आज तक तो मुझे कभी उसकी फिक्र नहीं हुई? फिर अब अचानक मैं उसके बारे में इतना क्यों सोच रहा हूं? अचानक मुझे उसकी इतनी फिक्र क्यों हो रही है?कुछ समझ नहीं आ रहा है? ऐसा लग रहा है जैसे मैं पागल हो रहा हूं l"
शब्द अभी अपनी उलझनों में ही उलझा हुआ था तब तक वाणी भी कमरे में आ गई l उसके अंदर आते ही शब्द की नजर बहुत रोकने के बाद भी उस पर चली ही गई l वाणी कबर्ड से अपनी नाईट ड्रेस निकाल कर बाथरूम में चली गई और उस दौरान सबकी नजरे लगातार चुपके चुपके उसका पीछा करती रही l
" मैं इसे घूर क्यों रहा हूं?ये क्या हो रहा है मुझे? जिस इंसान की शक्ल से भी मैं नफरत करता था आज उसे घूरे जा रहा हूं वो भी बिना किसी वजह के? हे भगवान! इससे पहले मेरे साथ कुछ और गड़बड़ हो, मैं सो जाता हूं l"
ये सोचते हुए शब्द अपना कंबल ओढ़ कर सोने लगा तभी अचानक वाणी के चीखने की आवाज सुनाई दी l चीख सुनकर शब्द तुरंत उठकर बाथरूम की तरफ भागा और दरवाजा खटखटाते हुए बोला, "क्या हुआ?तुम ठीक तो हो ना?"