मेरी महफिल में तूने जो शिरकत की,
इसलिए मैं तेरा शुक्र गुजार रहूंगा।
मैं धन्य हुआ तेरे कदमों के आगाज से,
महफिल जो आबाद हुई,
तेरी सुरीली आवाज से।
मैं वीरान खंडहर में पनपा अकेला एक पेड़,
दिन भर सुनसान मैं खड़ा
जिंदगी के रंगों को तलाशता रहता हूं,
आज तूने यहां आकर
हे कोयल तू ने यहां अपनी
कूक से इस वीरान जिंदगी में फिर बहार ला दी ।
वक़्त ने करवट ली जो, मालिक मुझे यहीं छोड़ शहर चला गया;
में अपनी इच्छाओं का दमन कर यहीं कैद रह गया।
आज तूने इस बूढ़े पेड़ पे बैठ, जो गाना है गुनगुनाया;
मुझे अपना वह बचपन याद आया।
अब एक बार फिर इस वीराने में भी आयेगी बहार,
समाज में हमारे जैसे बूढ़े पेड़ों का भी होगा उद्धार।
तुम्हे देख कर और भी पक्षी यहां चहाचहाएंगे चमन में,
मैं भी फिर से लहलहाने लगूंगा पूरे यौवन में।