: हैं प्रभु तुम मेरे साक्षीदार रहना,,
जिससे आप के द्वारा दिये गये ज्ञान को में अपने माध्यम से इस जगत को देने मे सफल रहूँ •-----
हैं जगत धारियों सुनो
ईश्वर कहता है में तुझमें हूँ और तुम मुझमें यानी की हम दोनों का मिलन ही मानव रुप हैं,,और ईश्वर हम सब को एक समान बनाता है,,एवं दो जात बनाता हैं,नर और नारी,बाक़ी सारा जाल तो हम स्वयं बिछाते हैं और स्वयं ही उसमें फँसते हैं,,
इसमें ईश्वर का कोई दोष नहीं हैं •--
उन्हें दोषी ठहराकर हम और गुनहगार बन जाते हैं,,
ईश्वर कहता है मेरे बिना तुम एक क्षण भी जीवित नहीं रह सकते और तुम्हारे बिना मे भी,,
जैसे कितना भी बड़ा पेड़ हो वो अपनी जड़ो के आधार पर ही धरती पर खड़ा रहे सकता है,,हम भी उसी प्रकार पेड़ हैं जो ईश्वर के नाम रूपी जड़ो के कारण टिके हुए हैं,,
हम भी ईश्वर की भक्ति कर वो रस पा सकते हैं जो किसी भी मौसम मे हमे प्राप्त हो सकता हैं,,
जैसे आपने मेंगो प्लप या मेंगो आईस्क्रिम तो खाईं होगी वो हर सीज़न में भी हमें उपलब्ध मिलेगी।
उसी प्रकार ईश्वरीय भक्ति भी हमारे कदम कदम पर हमें मिलती रहती हैं,,लोगों का ऐसा समझना गलत है कि मंदिरों मे पैसे व प्रसाद चढ़ाना गलत हैं,,ईश्वर हमारे माता पिता के समान ही है,जैसे दो या तीन साल का बच्चा उनके माता पिता को एक पपी देदे तो उनके माता पिता को कितनी खुशी मिलती हैं फिर वो उस बच्चे का कितना लाड प्यार करते हैं,उसकी हर माँग को पूरा करते हैं,,
उसी प्रकार हमारे द्वारा चढ़ाया गया प्रसाद और पैसे ईश्वर के प्रति सच्चे प्यार और पपी का ही रुप हैं,जिससे प्रभु प्रसन्न होकर हमारी मनोकामनाएँ पूर्ण करते हैं,,
लेकिन याद रहे मानव रूपी इस फल को कभी भी सड़ने ना दे क्योंकि मेहनत से पकाया हुआ फल अगर खराब निकल जावै या उसे खाने पर कोई स्वाद ना आवै तो मन को बहुत पिड़ा ,दुख होवै,,
•------जय श्री वासुदेव .............
•--------------कवि की कल्पना
का सम्मान करें,,
माँ सरस्वती जी आपकी झोली को
ज्ञान से भरें,,
•------------कवि
भाई मंशीराम देवासी
बोरुन्दा जोधपुर
9730788167