दुनिया सूँ वास्तो पड़ियों तो देखण रो
नुवो नजरियों पनपियों
संकोची मन कागद और पेन
रे सहारे सूँ कुछ लिखण लाग्यौं
में कोशिश करु कुछ बेहतर सीख सकूँ
मैनें सोचा लोग धरती की गहराई
अर असमान की ऊंचाई
का अनुमान लगा सके
तो फिर में अपणे मन के भावों का
अनुमान क्यों नहीं लगा सकूँ
में मेरे मन के विचारों की
विमान क्यों नहीं उड़ा सकूँ•----•----
वैसे मुझे सबसे अधिक विश्वास और
मेरे शब्दों को समर्थन ,,
सभी समाज के बुद्धिजीवियों से मिला हैं ,,उनके बल पर में
बहुत सारी रचना लिखी और
लिखने में सफल रहूँगा -------
बस अब में अतिम दो शब्द कहूंगा
_______________ॐ______________
आप सभी महानुभवीयों का बहुत बहुत आभार,,
मेरे लिखने मे आप सभी सहायता करते रहना,,
जिससे सफल हो मेरा लिखना,,
----------ॐविष्णु देवाय नम: ---------
विचारक-----
भाई मंशीराम देवासी (सामङ)
---बोरुन्दा जोधपुर ----
-----9730788167-------