---*विचारक ---*
ध्यान करो
विचार कैसा भी होवे
मांडिज्यौड़ा विचार दाय आ जावै
इण वास्ते विचार करता रेवौ
कुछ भिचार आवै मन मै
दुख बढ़ा जावै जीवन मै
अबोध बालक पैदा हौवे घर मैं
सुबोध खुशीया मनावै जग मैं
किती दया है माँ -बाप मैं
पाल पोश ने बड़ों करें बेटा ने
कुछ भी लकण कोनी उस बेटा मैं
जो परेशान करे माँ -बाप ने
दुख दर्द सब सहे
भूखे प्यासे वे रहे और
जीवन भर घणी करी कमाई
अरे कितनी नालायक है
वा औलाद जिन्हें माँ -बाप
की ख्वाहिश नजर नहीं आई
और कई सुणाऊ दोस्तों
प्रेम जाल में उळीज्योड़ा
छोरा कांई समझें माँ बाप रो रिश्तों
में मंशीराम देवासी थाने कऊ
हाथ जोड़ ने समझाऊ
इणरो दिल मत दुखाओ
ओ है एक अनमोल फरिश्तों
जग मे सच रे साथे झूठ भी है
और अच्छा रे हाथे बुरों भी
तो बुरों कांई कांई हैं
बताऊँ
टुटीयोड़ी खाट बुरी
मांथे मे टाट बुरी
भाईयो वाली आंट बुरी
पुलिस री डांट बुरी
होटल री चाट बुरी
और कांई बताऊँ दोस्तों
इण कलजुग मे
दगाबाज की बाट बुरी
खेत में हरी बुरी
पड़ोस मे हेली बुरी
बाबाजी के चेली बुरी
ठेका वाली थेली बुरी
और कांई बताऊँ दोस्तों
इण कलजुग मे
बीमारी शरीर की है बुरी
पनघट पर नहाणो बुरों
आदमियों मे काणो बुरों
नजदीक मे थाणों बुरों
बिना राग गाणों बुरो
स्वाद बिना खाणों बुरों
धाप ने पिणों बुरों
और कांई बताऊँ दोस्तों
इण कलजुग मे
बिना मान आणों
और जाणौं है बुरों
और मंशीराम देवासी कहे
फालतू बांता सुणनौं बुरों
जो गन्दगी मे करे बसेरा
वो गुलाब की सुगंध क्या जाणें
जो खाये अण्डा मांस वो
दुसरो की पिड़ा क्या जाणें
जो कदई खोटी पाई नहीं देखी
वो लाख लखिणा क्या जाणे
जो कदई बकरी तक दोई कोनी
वो भैस रो धिणौ कई जाणे
और कांई बताऊँ दोस्तों
जिसके पास दो बखत रो भोजन कोनी
वो बिचारों सुख सुं रेणौं कांई जाणै
घर मे हो भले ही दो मण दुध
पण जावण बिना कुछ भी कोनी
खेती करलो चाहें सौ बिगा
पण सावण बिना कुछ भी कोनी
और कांई बताऊँ दोस्तों
धन चाहे जितना कमा लोजिन्दगी
मे पर इज्जत बिना कुछ भी कोनी
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भाई मंशीराम देवासी
देवासी बोरुन्दा
जोधपुर