चलो हर वर्ष की भाँति इस वर्ष भी हमने होली जलादी,,
भक्त और भगवान का जो अटूट रिश्ता है,उसकी झलक हमारे बच्चों को दिखलादी,,
लेकिन क्या हम हमारे बच्चों को इतना भक्ति भाव मे डुबोते हैं,जिन्हें बाद मे बार निकालने पर उनके शरीर से हमेशा भक्ति रस ही टपकता रहे,नहीं कभी भी नहीं,
हम तो हमारे बच्चों को ऐसी शिक्षा देते हैं,प्रभु ,,
जो अपने माता पिता का,भाई बहन का,परिवार व प्यार का,इंसान से इंसान का रिश्ता भी नहीं समझ पाते हैं •--जिससे कि
अत:समय मे यह शिक्षा हमें भिक्षा मांगने के लिये मजबूर कर देती हैं,,
अरे जब बेटा बाप का सम्मान करना ही नही जानता है तो बाप के द्वारा दी हुई शिक्षा का क्या मूल्य रहा,,
मेरी इस कहानी का किसी भी कहानी,लेख,पाठ,पत्र से कोई लेना देना नहीं और ना ही मेरे मन से उपजे विचारों से कुछ लेना -देना है,
यह एक हकीकत घटित घटना हैं,
जिसे देखकर मेरे मन मे पिड़ा प्रकट हुई हैं •--
जिसे में लिखित रूप मे प्रस्तुत कर रहा हूँ,, होली की विशेष घटना •-~
एक बाप अपने बेटे के लिए कोई कमी कसर नहीं रखता हैं,लेकिन एक बेटा अपने बाप के लिए कुछ न कुछ कमीयां रख ही देता हैं,,
बाप ने अपने बेटे को पाल पोसकर बड़ा किया और अपने पैरों पर खड़ा किया लेकिन ये क्या सम्भलते ही भाग निकला,,आजकल इस जमाने को देखकर किसे दोषी ठहरायें इस प्रश्न का उतर ढ़ुढ़ना मुश्किल हो गया है,
क्या पता बाप को की उसके द्वारा किया गया ये सारा जतन उसके लिए ही पतन का रूप ले लेगा,,
ये किसा हैं एक सरकारी कर्मचारी का जो किसी ने किसी सरकारी पद पर तीस सालों तक कार्यरत रहा और अब पेंशन योजना का भी लाभ मिल रहा है,लेकिन हकीकत यह है कि उनकी यह उम्र भर की मेहनत पर कोई हक ,अधिकार प्राप्त नहीं है,
इसका कारण इनके नालायक बेटे हैं,जो इनकी सम्पूर्ण संपत्ति पर अपना अधिकार कर इनकी खुशियों को कैद कर रखा है,,
इनका दुख:सुनेंगे तो रोंगटे खड़े हो जायेंगे भाई,लेकिन बाप तो बाप हैं,
उसे बेटों का यह पाप भी स्वीकार हैं,
उन्होंने कहा बेटे मे कोई अंधा नहीं हूँ,मे कोई लंगड़ा नहीं हूँ,मे कोई बेहरा नहीं हूँ,मुझमें कोई कमी नहीं है,पर अब में बुजुर्ग हूँ,और में जब जवान था तो जो मन मे आता अपने बच्चों के लिए खरीद लेता था,लेकिन अब विचार करना पड़ता है,सोचना पड़ता है,की क्या ले जाऊँ
और क्या नहीं ,
आज होली हैं,मे तो नहीं खाऊँगा
पर मेरे पोतों को तो खिलाऊँगा ,
जो हैं मेरे पास थोड़ा बहुत
उसका ही ले जाऊँगा,
मे तो दुखी हूं पर उन्हें तो हँसाऊँगा , दादा जी क्या लाये उनके
मुँह से यह तो सुनूंगा ,,
बस उन्हें तो खुशियों मिल जायेगी,
मेरी तो जिन्दगी यूं ही कट जायेगी,
उनका दर्द और अपनों के प्रति उनका प्रेम देखकर मेरी आँखों ने बहना शुरू कर दिया,,मेरी आँखों मे औस जैसी आँसू की बुन्द को देखकर वो बुजुर्ग काका सब समझ गया कि इस बालक का ह्रदय मेरा दुख देखकर पिसींज गया, उन्होंने कहा बेटे जिन समस्याओं का कोई समाधान नहीं मिलता,
उन्हें सहन करना पड़ता,,
कुछ नहीं काकाजी को मिठाई चाहिए थी पर उसकी कीमत चार सौ रुपये किलो थी,,
परन्तु काकाजी के पास तिनसौ रुपये ही थे,,
दुनिया की कोई दौलत मां बाप से बढ़कर नहीं होती हैं ,,
जो औलाद दौलत को मां बाप से ज्यादा मानें वो हमेशा रोती हैं,,
याद रहे जिन घरों मे बुजुर्गो का सम्मान नहीं होता हैं,
वहाँ सर्वनाश जरूर होता हैं,,
•--------लेखक
भाई मंशीराम देवासी
बोरुंदा जोधपुर राजस्थान
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