जय श्रीकृष्णा ----•
म्हारी रचनाएं बिल्कुल अनपढ़ हैं , म्हारी इण रचनाओं रो कोई भी
किताब, साहित्य ,शिल्प, विधा,कला
विज्ञापन,लेख और शैली सूँ कोई लेनों देनों नहीं हैं ये तो म्हारे मन सूँ
ही जन्मलेवै और म्हारी कलम सूँ ही
रुप-आकार -और म्हारी आ कलम किसी ख़ास जाति,धर्म,राजनैतिक
और भाषा सूँ पिड़ीत कोनी हैं
आप मन सूँ पढ़कर इसका आनंद लें !--•--
और ना म्हारी रचनाएं बिकाऊ है और न पुरस्कार री चाहत राखै हैं, अगर कुछ पढ़ने आया हो तो निराश नहीं होंवोला
विद्रोही स्वभाव,अन्याय सूँ लड़ने री इच्छा राखू ! ईश्वर अन्तिम घड़ी तक ईति शक्ति एवं सामर्थ्य अवश्य दें
म्हने कि जरूरतमंदो रे काम आतो रहूँ ,
भूल सूँ भी किणी रो दिल नहीं दुखाऊँ ..
टिंगरपणा री गलतियां तो
माँ- बाप ,आड़ोसी- पाड़ोसी ,मित्रपरिवार सगळा ई
माफ कर दे-----
जवानी मे जो लोभलालच,सवार्थ,
झूठ,छलकपट और छोरा-छोरी
री चाहत मे जो गुनाह करियो
बिने तो ईश्वर भी माफ नहीं करेला
इण वास्ते युवा अवस्था मे ही
विचार,इरादे, कार्य,दृष्टि और धर्म
रा पंथ चुणना हैं -•-
वैसे भी संकट रे मार्ग मे पग-पग
माथे सुविधा नहीं कांटा ही मिले
उण कांटों को भी चुणना हैं -•-
फिर देखों किकर अपणो जीवन
गुलाब रे ज्यूँ कांटों में महकेला
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म्हारे जीवन रो पहलो संगीत
शायद आप लोगों ने दाय आजावै
आप म्हारी गलतियों सूँ म्हने
अवगत करता रईज्यौं
में साफ और सुन्दर लिखतों रहूंला
में आशा राखूं आप सगला ई
म्हारो हौसलों बढ़ावोला-•----
साजन म्हारा परदेश बसे
परदेश बसें ऐ सखियाँ
घड़ी पलक नहीं आवेड़े
म्हानें करादो नी बतियां
सखियों के संग पनघट
जाऊँ फोड़ु मटकियां
साजन म्हारा परदेश बसे
परदेश बसें ऐ सखियाँ
दिनड़ो तो म्हारो बित ग्यौं
नहीं बित रही म्हारी रतिया
याद गणी आवे साजन री
बाटा जोवै म्हारी अँखियाँ
साजन म्हारा परदेश बसे
परदेश बसें ऐ सखियाँ
एक भर्ष एक जुग ज्यों लागे
जुग गणा बितग्यां
अब तो आवौ साजन म्हारा
सूख्ग्या नणौ रा दरिया
साजन म्हारा परदेश बसे
परदेश बसें ऐ सखियाँ
में थाने बुलावौ भैंजू
लिख-लिख भैंजू कागदीया
रिमझिम रिमझिम बरसे बादल
बादल मे चमके बिजलियाँ
अब तो आवौ म्हारा सायबा
खेत लहरावै बाजरियाँ
साजन म्हारा परदेश बसे
परदेश बसें ऐ सखियाँ
महीनों आयौ फागण रो
मंशीराम गावै फागणियाँ
अे सखि लागे साजन याद करे
म्हाने आवे छ: हिछकियाँ-•----
•-------विचारक---------•
भाई मंशीराम देवासी
बोरुन्दा जोधपुर -----•
9730788167