जय श्री कृष्ण,,::::::::---||||••••|||||~
__आर.के .श्री.मानवेंद्र जी मेरा आपको कोटि कोटि प्रणाम,,
आप महान विचारक हैं,आपके। विचारों को में रोज पढ़ता हूँ,और अपने जीवन मे उतरता हूँ,
लेकिन आपके एक विचार से मुझे तकरार हैं,क्योंकि मेरा भी व्यापार हैं,
आज का मेरा यह लेख आप तक पहुँच जाता हैं,,या आपको मिल जाए तो आज का आनंद पत्रिका मे मेरे इस लेख का उल्लेख दे सकते हो,,
घोटालेबाजों व जमाखोरों की जिम्मेदार सरकार खुद आप है,,
आप हर बार या बार बार व्यापारियों पर अंगुली उठाकर क्या साबित करना चाहते हैं,,अगर महंगाई बढ़ाना और घटाना व्यापारियों के हाथ मे है,तो में आपसे पूछता हूँ,सरकार क्या करती है,,अगर आप लेखक ना होकर एक व्यापारी होते तो शायद हमारा दुख आप समझ पाते,बड़ी आसानी से आपने कहाँ होना तो यह चाहिए कि सभी अनाज,दाल व चीजों के भाव ग्राहकों की राय से तय हो, में आपके इन शब्दों का सम्मान करता हूँ,लेकिन क्या व्यापारियों को ऐसा कोई हक नहीं होना चाहिये,जैसे दुकानों के भाड़े ,सरकारी टेक्स ,लाईट बिल,लाईसेंस व कागजातों के लफड़े ,आदि पर हमारी इच्छा अनुसार कार्य क्यूँ नहीं होता हैं,,हम राजनेताओं की तरह देश को लूटकर नहीं देश मे मेहनत करके कमाते हैं,,प्रत्येक व्यापारी पहले बहुत कठिन परिश्रम कर अपना गुजारा करता है,फिर अपनी ईमानदारी व लगन से व्यवसाय को सही ढंग से विश्वास की पेढ़ी बनाता है,,जिस पर हजारों लोग अपनी निजी सुविधा समझकर वहाँ आते हैं,और अपने जीवन उपयोगी वस्तुओं कि खरीददारी करते हैं,उन पर वाजिब मुनाफा बचाकर व्यापारी अपना व अपने कामगारो का पेट पालता हैं,, और उसी मे से वो सरकार को अनेकों प्रकार के टेक्स भुगतान करता है,,और इतना ही नहीं बल्कि दुकान की जगह के मालिक को मुहँ मांगा भाड़ा भी देता हैं,,यह सब चुकता करने पर भी कोई ने कोई समस्या लेकर सरकार के कर्मचारी धमकाने आ ही जाते हैं,इतना दो तो बात बनती हैं,नहीं तो दुकान बन्द करदों,जैसे उसके बाप ने ही पुरा खर्चा लगाकर दुकान बनाई हो,,और हा और भी परेशानियां है,साल के प्रत्येक त्यौहार पर चंदा,, में त्यौहार मनाने या किसी महापुरुष की जयंती मनाने के विरुद्ध नहीं हूँ,लेकिन इन पर व्यापारियों को होने वाली परेशानियों के विरुद्ध मे हूँ,, क्योंकि बढ़ती कीमतों ने व्यापारियों की भी कमर तोड़ रखीं हैं ,,नेता लोग किसानों को लुट ,व्यापारियों को कूट, फिर खरीदते हैं,सुट-बूट उन पर ध्यान देना चाहिए,,आप कहते हैं,व्यापारियों को थोड़ी भी बाधा हुई की हड़ताल कर देते हैं,,लेकिन सरकार को क्यूँ नहीं कहते की इतना टेक्स क्यूँ लेते हैं,कहाँ से लायेंगे हम ,क्या आप चाहते हैं,हम सरकार की सारी मांगें पूरी करने के लिये हम हमारे पूर्वजों की जमीन जायदाद बेंच दे ,,व्यापारियों का दुख सुनकर आँखें भर आई होगी साहब,,लेकिन किसी को इस दुख की कानों खबर नहीं हैं,
में आशा करता हूँ कि आप व्यापारियों को कोसने से ज्यादा सरकार को कोशेंगे ,जिससे सरकार बढ़ती हुई वस्तुओं की कीमतों को रोकेंगे •-----|||||
•-------विचारक
भाई मंशीराम देवासी
बोरुंदा जोधपुर राजस्थान
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