"दोहावली"
गली छोड़ कर क्यूँ गए, ओ मेरे मन मीत
कोयल अब गाती नहीं, सुबह सुरीली गीत।।-1
दूर जा रहें हैं सभी, जैसे जूनी रीत।
गाँव छोड़ कर बस रहे, शहर अनोखी प्रीत।।-2
सुना रहे हैं अब सभी, अपने मन की गीत।
मानों ओझल हो गई, लोक प्रीत संगीत।।-3
बूढ़ी दादी की कथा, अरु चौपाली हीत।
शंकित लगती चाल है, दम्भित लगते मीत।।-4
फैशन में सब कर रहे, अपने घर को तीत।
वरना मीठी ही लगे, मैना मुँह संगीत।।-5
क्यों कोई आता नहीं, दोहा करने मीत।
भला अकेला क्या करूँ, किसे सुनाऊँ गीत।।-6
मान और सम्मान सब, दिया तुम्हें मनमीत।
फिर भी तुम आते नहीं, मिलकर गाने गीत।।-7
सुंदर-सुंदर शब्द हैं, सुंदर दोहा गीत।
दे दो अपना प्यार तो, बन जाए संगीत।।-8
बहुत सुहानी शाम है, बहुत पुरानी रीत।
मिलकर गाते हैं सभी, कीर्तन प्रभु संगीत।।-9
फागुन के प्रिय माह में, सुनी फागुनी गीत।
रंग भंग अरु ताल में, लाल रंग संगीत।।-10
कलम कबीरा धन्य है, लिख्खे बात पुनीत।।
राह दिखाती आज भी, मनमोहक संगीत।।-11
महातम मिश्र, गौतम गोरखपुरी