आधार छंद - सरसी (अर्द्ध सम मात्रिक) शिल्प विधान सरसी छंद- चौपाई + दोहे का सम चरण मिलकर बनता है। मात्रिक भार- 16, 11 = 27 चौपाई के आरम्भ में द्विकल+त्रिकल +त्रिकल वर्जित है। अंत में गुरु /वाचिक अनिवार्य। दोहे के सम चरणान्त में 21 अनिवार्य है
"गीत"
लहराती फसलें खेतों की, झूमें गाँव किसान
बरगद पीपल खलिहानों में, गाते साँझ बिहान......लहराती फसलें .....
बहुत पुरानी बात नहीं यह, माटी की दीवार
सूरज उगता था आँगन में, अंकुर ऋतु अनुसार
झुकती थीं तरुवर की डाली, फलते थे पकवान
तोता मिट्ठू चखे आम फल, मैना धुन धनवान...... लहराती फसलें......
कहाँ गए तुम राह बटोही, सूनी डगर बहार
महुआ जामुन पेड़ करौंदा, बौने हैं दीनार
भालू दिखता नहीं मदारी, जंगल की पहचान
पिजरे में हाथी मतवाला, अरु शेरा बलवान..... लहराती फसलें ......
महातम मिश्र, गौतम गोरखपुरी