छन्द- सीता (मापनीयुक्त वर्णिक) वर्णिक मापनी - 2122 2122 2122 212 अथवा लगावली- गालगागा गालगागा गालगागा गालगा पारंपरिक सूत्र - राजभा ताराज मातारा यमाता राजभा (अर्थात र त म य र)
"गीतिका"
छा रही कैसी बलाएँ क्या बताएँ साथियों
द्वंद के बाजार में क्या क्या सुनाएँ साथियों
क्यों तराजू को झुकाते बाट हैं बेमाप के
तौलना तो देखना पाला उठाएँ साथियों।।
क्यों गली में शोर है आया कहाँ से आदमी
जान लें आया कहा से औ बुलाएँ साथियों।।
क्या खजाना दे दिया वादे पुराना पूछना
क्या चुराया आप का आओ गिनाएँ साथियों।।
ये रियाया है पुरानी आप की कुर्सी नयी
भाव खाने की कला को क्यों भुनाएँ साथियों।।
देश का उद्धार हो ऐसा जिया में ठान लें
छा तमाशा देखना गाती फिजाएँ साथियों।।
मान ले जी आज भी माया हुई साथी नहीं
एक सी होती नहीं ज्योती जगाएँ साथियों।।
आ गए झाँसे में जो वा से न गौतम रूठना
भूख लागे है सभी को जां लुटाएँ साथियों।।
महातम मिश्र, गौतम गोरखपुरी