"मुक्तक"
सत्य समर्पित है सदा, लेकर मानक मान।
जगह कहाँ कोई बची, जहाँ नहीं गुणगान।
झूठा भी चलता रहा, पाकर अपनी राह-
झूठ-मूठ का सत्य कब, पाता है बहुमान।।-1
सही अर्थ में देख लें, लाल रंग का खैर।
झूठ सगा होता नहीं, और सगा नहीं गैर।
सत्य कभी होती नहीं, आपस की तकरार-
झूठ कान को भर गया, खूँट बढ़ा गया बैर।।-2
महातम मिश्र, गौतम गोरखपुरी