"मुक्तक"
दीपक दीपक से कहे, कैसे हो तुम दीप।
माटी तो सबकी सगी, तुम क्यों जुदा प्रदीप।
रोज रोज मैं भी जलूँ, आज जले तुम साथ-
क्या जानू क्या राज है, क्यों तुम हुए समीप।।-1
धूमधाम बाजार में, चमक रहे घरबार
चाक लिए कुम्हार है, माटी महक अपार
तरह-तरह के दीप हैं, भिन्न-भिन्न लौ रंग
बिकता कोई बिन कहे, कहाँ चटक त्यौहार।।-2
महातम मिश्र, गौतम गोरखपुरी