"मुक्तक"
युग बीता बीता पहर, लेकर अपना मान।
हाथी घोड़ा पालकी, थे सुंदर पहचान।
अश्व नश्ल विश्वास की, नाल चाक-चौबंद-
राणा सा मालिक कहाँ, कहाँ चेतकी शान।।-1
घोड़ा सरपट भागता, हाथी झूमे द्वार।
राजमहल के शान थे, धनुष बाण तलवार।
चाँवर काँवर पागड़ी, राज चाक- चौबंद-
स्मृतियों में अब शेष हैं, प्रिय सुंदर उपहार।।-2
महातम मिश्र, गौतम गोरखपुरी