विधान- मात्रायें -१३ १९ यति से पहले व बाद में २१या१२ चरणान्त २२ चरणान्त शब्द – छाया
राधिका छन्द-राधिका छन्द-
मानव कर्म महान रे मनुज संसारी
कर ले जीवन काम रे समय अनुसारी
काम क्रोध अरु लोभ में सुलगती काया
मिला न राम रहीम तुझ विखरती छाया॥
रात दिवस तूँ जग रहा सघन हुसियारी
रोग बहूते घिर रहे जतन बीमारी
आलस के साम्राज्य में तूने क्या पाया
कैसी तेरी राह है कत गई छाया॥
धीरज रख चित मान ले न कर कायरता
हिम्मत से सब काम ले कर न आतुरता
व्यर्थ करें फरियाद क्यों कथक दिन आया
होता क्यो गुमराह है अपन मन छाया॥
कभी कभी तो टूटता लाज शरम हया
क्यों रि मन परेशान है दंभ काज मया
क्या तेरा जो खो गया कुछ समझ आया
ठंडी शीतल धूप है कस लाग छाया।।
मतलब वन व्यवहार है सु हिरण विचरता
सम्पति घर रखवार है लटकन लटकता
अपने मन से पूछ तो रखा सो पाया
परछाँई पीछे पड़ी दूर रख छाया।।
महातम मिश्र, गौतम गोरखपुरी