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सांझ का अंकुर (लघु कहानी)

8 दिसम्बर 2024

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लघु कहानी: 
         सांझ का अंकुर
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       © ओंकार नाथ त्रिपाठी अशोक नगर बशारतपुर गोरखपुर उप्र।
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समय के साथ जीवन अपनी लय में बहता है। वह लड़का और लड़की जो कभी युवावस्था के भोर में एक-दूसरे के साथी थे, अब अपने-अपने सुखी परिवारों में जीवन जी रहे थे।

सालों पहले लड़की के मन में प्रेम के कोमल भाव अंकुरित हुए थे, लेकिन लड़के को उनकी भनक तक नहीं थी। वह तो उसे सिर्फ एक सच्चा मित्र समझता था। फिर परिस्थितियों ने दोनों को अलग कर दिया, और समय ने उनके बीच एक ऐसी दूरी बना दी, जिसे पार करना असंभव-सा लगने लगा।

सालों बाद, एक संयोग से, वे फिर मिले। दोनों ही अब परिपक्व थे, और उनके चेहरों पर जीवन के अनुभवों की लकीरें साफ़ दिखती थीं। जब दोनों ने एक-दूसरे को देखा, तो जैसे पुरानी यादों की किताब अचानक खुल गई। लड़की ने अपनी पुरानी भावनाओं को फिर से महसूस किया, और इस बार लड़के ने भी उन भावनाओं को समझा।

उनकी बातचीत लंबी होने लगी। वह हँसी-मज़ाक जो कभी उनके यौवन का हिस्सा था, अब गहरी समझ और अपनत्व में बदल चुका था। लड़का अब उस प्रेम को समझने लगा, जो लड़की ने कभी उसके लिए महसूस किया था।

लेकिन वे दोनों जानते थे कि अब उनका मिलन संभव नहीं। उनका जीवन, उनके परिवार, उनकी जिम्मेदारियां सबकुछ अपनी जगह सही थे। फिर भी, उनके बीच कुछ ऐसा था जो शब्दों से परे था—एक अदृश्य डोर, जो उन्हें बाँध रही थी।

सांझ की इस बेला में, उनकी भावनाओं का बीज फिर से अंकुरित हुआ। क्या यह अंकुर कभी वृक्ष बन पाएगा? शायद नहीं, लेकिन उनके दिलों में जो अपनापन जागा था, वह उनकी सांझ को रोशन करने के लिए काफी था।

वे फिर अलग हो गए, लेकिन इस बार दिलों में अधूरेपन का कोई बोझ नहीं था। क्योंकि अब वे समझ चुके थे कि प्रेम केवल पाने का नाम नहीं, बल्कि समझने और महसूस करने का भी होता है।
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© ओंकार नाथ त्रिपाठी अशोक नगर बशारतपुर गोरखपुर उप्र।
                   (चित्र:साभार)article-image

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यादों के पन्ने
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"यादों के पन्ने"मेरी यह दुसरी कहानी संग्रह है जो शब्द इन पर प्रकाशित हो रही है।इसके पहले "समय की खिड़की" में मेरी पंद्रह लघु कहानियों का संग्रह प्रकाशित हुआ है।शब्द इन पर प्रकाशित होने वाली मेरी यह तेरहवीं पुस्तक है। इसके अतिरिक्त एक पुस्तक योर कोट्स पर प्रकाशित हुई है। मेरी इस कहानी संग्रह की कहानियां सामाजिक ताना-बाना के आधार पर शब्दों द्वारा ऐसी बुनी गयी है ताकि उनमें फंतासी महसूस हो। समाज में घटित हो रही घटनाएं लेखन को प्रभावित करती हैं ऐसे में लेखक का भी प्रभावित होना सामान्य सा होता है लेकिन कहानी अगर कहीं किसी घटना से मेल खाती हो तो वह महज एक संयोग ही होगा। कहानी के पात्र अगर कहीं किसी से मेल खा रहे हैं तो वह भी महज एक संयोग ही होगा। कहानी की विषम वस्तु अगर किसी स्थान,चरित्र, पात्र या व्यक्ति विशेष से मिलती जुलती है तो यह भी महज एक संयोग होगा। इस संग्रह में कहानी की विषय वस्तु से किसी व्यक्ति,समाज या संस्था को ठेस पहुंचाते की कोई मंशा नहीं है।अगर कहीं ऐसा लगता है तब वह एक संयोग ही है। आशा है कि पाठक गण कहानियों को इस संग्रह में पढ़कर अपने सुझाव देकर मुझे अपना अमूल्य योगदान देंगे। © ओंकार नाथ त्रिपाठी अशोक नगर बशारतपुर गोरखपुर ।

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