लघु कहानी:
सांझ का अंकुर
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© ओंकार नाथ त्रिपाठी अशोक नगर बशारतपुर गोरखपुर उप्र।
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समय के साथ जीवन अपनी लय में बहता है। वह लड़का और लड़की जो कभी युवावस्था के भोर में एक-दूसरे के साथी थे, अब अपने-अपने सुखी परिवारों में जीवन जी रहे थे।
सालों पहले लड़की के मन में प्रेम के कोमल भाव अंकुरित हुए थे, लेकिन लड़के को उनकी भनक तक नहीं थी। वह तो उसे सिर्फ एक सच्चा मित्र समझता था। फिर परिस्थितियों ने दोनों को अलग कर दिया, और समय ने उनके बीच एक ऐसी दूरी बना दी, जिसे पार करना असंभव-सा लगने लगा।
सालों बाद, एक संयोग से, वे फिर मिले। दोनों ही अब परिपक्व थे, और उनके चेहरों पर जीवन के अनुभवों की लकीरें साफ़ दिखती थीं। जब दोनों ने एक-दूसरे को देखा, तो जैसे पुरानी यादों की किताब अचानक खुल गई। लड़की ने अपनी पुरानी भावनाओं को फिर से महसूस किया, और इस बार लड़के ने भी उन भावनाओं को समझा।
उनकी बातचीत लंबी होने लगी। वह हँसी-मज़ाक जो कभी उनके यौवन का हिस्सा था, अब गहरी समझ और अपनत्व में बदल चुका था। लड़का अब उस प्रेम को समझने लगा, जो लड़की ने कभी उसके लिए महसूस किया था।
लेकिन वे दोनों जानते थे कि अब उनका मिलन संभव नहीं। उनका जीवन, उनके परिवार, उनकी जिम्मेदारियां सबकुछ अपनी जगह सही थे। फिर भी, उनके बीच कुछ ऐसा था जो शब्दों से परे था—एक अदृश्य डोर, जो उन्हें बाँध रही थी।
सांझ की इस बेला में, उनकी भावनाओं का बीज फिर से अंकुरित हुआ। क्या यह अंकुर कभी वृक्ष बन पाएगा? शायद नहीं, लेकिन उनके दिलों में जो अपनापन जागा था, वह उनकी सांझ को रोशन करने के लिए काफी था।
वे फिर अलग हो गए, लेकिन इस बार दिलों में अधूरेपन का कोई बोझ नहीं था। क्योंकि अब वे समझ चुके थे कि प्रेम केवल पाने का नाम नहीं, बल्कि समझने और महसूस करने का भी होता है।
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© ओंकार नाथ त्रिपाठी अशोक नगर बशारतपुर गोरखपुर उप्र।
(चित्र:साभार)