प्रस्तुत है विश्रब्ध आचार्य श्री ओम शंकर जी का सदाचार संप्रेषण :-
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सर्वप्रिय भैया अशोक त्रिपाठी (बैच 1988) को केन्द्र में रखकर आज आचार्य जी ने हम लोगों को प्रेरित किया आचार्य जी हम लोगों को आप कहकर क्यों संबोधित करते हैं यह उन्होंने स्पष्ट किया l सामाजिक मर्यादाओं में बंधकर तुम /तू शब्द आप हो जाता है l भैया अशोक त्रिपाठी को हाल ही में बहुत कठिन कष्टकारी क्षणों से गुजरना पड़ा था जब उनकी धर्मपत्नी और पिता जी एक दिन के अन्तराल में संसार त्यागकर चले गये थे l आचार्य जी ने उन्हें ढाढस बंधाया l कोरोना काल ने हमारे बहुत से आत्मीय जनों को विकराल रूप धारण कर लील लिया था l जब जीवात्माओं में मन भटकता है तो मन अत्यधिक भावुक हो जाता है l किसी स्थान के मोह की अभिव्यक्ति के बारे में आचार्य जी ने बताया l इसके बाद आपने ऋग्वेद (5/82/5) की एक प्रार्थना ॐ विश्वानि देव सवितर्दुरितानि परासुव । यद् भद्रं तन्न आ सुव ॥ की व्याख्या की समस्त संसार को उत्पन्न करने वाले (सृष्टि-पालन-संहार करने वाले) विश्व में सर्वाधिक देदीप्यमान एवं जगत को शुभकर्मों में प्रवृत्त करने वाले हे परब्रह्मस्वरूप सवितादेव! आप हमारे सभी आध्यात्मिक, आधिदैविक व आधिभौतिक बुराइयों व पापों को हमसे दूर, बहुत दूर ले जाएं; और जो कल्याणकारी हों उन्हें हमारे पास रख दें हम भ्रमित हुए अस्ताचल वाले देशों को जब देखा को याद दिलाकर आचार्य जी ने कहा कि उस भ्रम और भय को त्याग कर हमें आत्मचिन्तन करना चाहिये l जागरण शयन ध्यान धारणा अध्ययन स्वाध्याय संगति खानपान सभी सही हों इसका ध्यान दें |