प्रस्तुत है विकिरण -प्रहि आचार्य श्री ओम शंकर जी का सदाचार संप्रेषण जिसे समीक्षातीत अत्यन्त दिव्य प्रसाद समझकर हमें ग्रहण करना चाहिये यह हमें प्रेरित करने के लिये है |
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धर्मज्ञ होना तो बहुत कठिन है लेकिन धर्माचारी होना आसान है विद्यालय में जन्माष्टमी के बाद छठी उत्सव होता था, पारंपरिक रूप से बैरिस्टर साहब के घर पर भी यह उत्सव होता था जहां किसी विद्वान कथा और दिव्य प्रसाद का वितरण उल्लेखनीय बात थी आचार्य जी ने स्कन्द पुराण में परमात्मा की एक दिव्य प्रार्थना का उल्लेख किया पुराणों के क्रम में स्कंद पुराण का 13 वां स्थान है। आकार की दृष्टि से यह सबसे बड़ा पुराण है। इसमें स्कंद (कार्तिकेय ) द्वारा शिवतत्व का वर्णन है।इसमें तीर्थों के उपाख्यानों और उनकी पूजा-पद्धति का भी वर्णन है। 'वैष्णव खंड' में जगन्नाथपुरी की और
काशीखंड' में काशी के समस्त देवताओं, शिवलिंगों का आविर्भाव आदि बताया गया है। 'आवन्यखंड' में उज्जैन के महाकलेश्वर का वर्णन है।'सत्यनारायण व्रत' की कथा इसके 'रेवाखंड' में मिलती है। आचार्य जी ने कहा हत्या हत्या ही है चाहे दीनदयाल जी को हो या गांधी जी की हत्या और युद्ध में अन्तर है धोखे से ही गांधी जी को भी मारा गया भारत वर्ष में त्याग की पूजा होती है भोग की नहीं राधेश्याम खेमका जी, हनुमान प्रसाद पोद्दार जी आदि अवतार ही हैं इन अवतारों की अनुभूति करने का कुछ देर भी प्रयास करेंगे तो भारत देश के प्रति श्रद्धा भक्ति समर्पण सब कुछ आ जायेगा भारत की शक्ति और भक्ति की वृद्धि के लिये जो भी प्रयास करेगा वो हमारा ही आदमी मान लिया जायेगा उत्साह से ही समस्याओं का सामना करें |