ओम शंकर जी का सदाचार संप्रेषण :-
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हम संसार से संयुक्त रहकर संसार से मुक्त होने का प्रयास करते हैं l सहज विषयों को लेकर उसमें से तात्त्विक अंशों को छांटना सदाचार का रूप धारण कर लेता है इसी से हमारे संपर्क संयुत होते हैं संबन्ध बनते हैं समाज सेवा का संतोष मिलता है समाज सेवा हमारे सदाचार का मूल आधार है हम समाज, वाणी, प्रकृति, विचार आदि को देवता समझते हैं l यह देवत्व भाव परमात्मा की कृपा है मन में सात्विकता होने पर व्यवधान आने पर हमें उपाय सूझते हैं न कि हम खीझते हैं आज हम लोग सरस्वती पूजन भी करते हैं सरस्वती एक नदी भी है सरस्वती की खोज डा बाकणकर के प्रयासों से संभव हो सकी हमारा वैदिक ज्ञान सरस्वती नदी के तट पर उत्पन्न हुआ है मां सरस्वती को हम लोगों ने देवी माना हम लोगों को निम्नांकित प्रार्थना अवश्य करनी चाहिये या कुन्देन्दुतुषारहारधवला या शुभ्रवस्त्रावृता या वीणावरदण्डमण्डितकरा
या श्वेतपद्मासना या ब्रह्माच्युतशंकरप्रभृतिभिर्देवै: सदा वन्दिता सा मां पातु सरस्वती भगवती नि:शेषजाड्यापहा ll आज 1719 में जन्मे हकीकतराय का बलिदान दिवस भी है जिन्हें बसंत पञ्चमी के दिन 1734 में इस्लाम न स्वीकारने पर फांसी दे दी गई हमारा तो प्रयास रहता है कि जो सभ्यताएं क्रूरता का आधार लिये विकसित हुई हैं उनको रास्ते पर ले आयें आचार्य जी ने यह भी स्पष्ट किया कि हम विश्वगुरु कैसे बने आचार्य जी से हमें तात्त्विकता प्राप्त करनी चाहिये मनुष्यत्व को प्राप्त करने के लिये कोई गुरु न मिले तो अपने भीतर ही गुरु को खोजें |