समय नहीं विचार का यही समय प्रहार का, सभी उठें कमर कसें कि, एक भाव में बसें , दिखेगा यह कि शौर्य शक्ति का उजास हो रहा । प्रस्तुत है यतिन् आचार्य श्री ओम शंकर जी का सदाचार संप्रेषण :-
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हमें अपने नाम से लगाव हो जाता है यह संसार का नाम रूपात्मक संबन्ध है , दीनदयाल जी ने एक संघ शिक्षा वर्ग OTC में नाम पर ही बौद्धिक दिया था जागते सोते नाम का रूप से संबन्ध हो जाता है यह मनुष्य जीवन के लिये परमात्मा की विचित्र लीला है परमात्मा तो इस तरह की बहुत सी लीलाएं करता है यह नित्य का सदाचार संप्रेषण अपने भाव जगत, प्राणिक ऊर्जा,चैतन्य, विचारों को परिमार्जित करता चलता है अथर्ववेद का उपवेद है आयुर्वेद हिताहितं सुखं दुःखं युस्तस्य हिताहितम्। मानं च तच्च यत्रोक्तां आयुर्वेदः स उच्यते।। जिसके द्वारा आयु प्राप्त हो और जिसके द्वारा आयु जानी जाये वह आयुर्वेद है ब्रह्मा ने एक लाख छंदों का (एक हजार अध्याय )आयुर्वेद शास्त्र बनाया उसे प्रजापति फिर अश्विनी कुमारों फिर इन्द्र फिर धनवन्तरि और इसके बाद सुश्रुत ने पढ़ा सुश्रुत द्वारा रचित आयुर्वेद आठ भागों में बंटा है कायचिकित्सा, शल्यतन्त्र, शालक्यतन्त्र, कौमारभृत्य, अगदतन्त्र, भूतविद्या, रसायनतन्त्र और वाजीकरण। इस अष्टाङ्ग (=आठ अंग वाले) आयुर्वेद के अन्तर्गत देहतत्त्व, शरीर विज्ञान, शस्त्रविद्या, भेषज और द्रव्य गुण तत्त्व, चिकित्सा तत्त्व और धातृविद्या भी हैं। इसके अतिरिक्त उसमें सदृश चिकित्सा (होम्योपैथी), विरोधी चिकित्सा (एलोपैथी), जलचिकित्सा (हाइड्रोपैथी), प्राकृतिक चिकित्सा (नेचुरोपैथी), योग, सर्जरी, नाड़ी विज्ञान (पल्स डायग्नोसिस) आदि आजकल के अभिनव चिकित्सा प्रणालियों के मूल सिद्धान्तों के विधान भी 2500 वर्ष पूर्व ही सूत्र रूप में लिखे हैं और इतना उच्च कोटि का आयुर्वेद एक किनारे कर दिया गया अपनी शिक्षा पद्धति के विकारों के कारण हम अविश्वासी हो गये | आचार्य जी नेआयुर्वेद की महत्ता हेतु पञ्चतृण (कुश काश शर दर्भ इक्षु )क्वाथ के प्रयोग वाला प्रसंग बताया (30/9/21 को भी बताया था ) यह समय चिन्तन मनन ध्यान धारणा का है हमें अपने कर्तव्य को जानना आवश्यक है हम दीपक हैं अपने दीपक धर्म का पालन करें जलना ही हमारा धर्म है यह संसार बहुत अद्भुत है इसकी अद्भुतता का अनुभव करते हुए जिसने इस अद्भुत संसार की रचना की है हमारे अन्दर उसके प्रति यदि जिज्ञासा है तो हम मोक्ष की अद्भुत अवस्था पाने की ओर चल देते हैं |