प्रस्तुत है भ्राजिष्णु आचार्य श्री ओम शंकर जी का सदाचार संप्रेषण
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कल प्रखर देशभक्त चन्द्रशेखर 'आजाद (२३ जुलाई १९०६ — २७ फ़रवरी १९३१) का बलिदान दिवस था आचार्य जी ने उनके ऊपर एक नाटक लिखा था जिसका मंचन सन् 1970 के आसपास ग्राम बदरका में हुआ था आचार्य जी वहां भैया राजेश मल्होत्रा भैया राजेश पांडेय (बैच 1975) आदि को लेकर गये थे आचार्य जी ने उनके ऊपर लिखी कवि धर्मपाल अवस्थी की क्रान्ति -महारथी की चर्चा करते हुए उनका जीवन पढ़ने की सलाह दी कल साप्ताहिक विमर्श में गांधी जी की प्रासंगिकता आदि की चर्चा में आचार्य जी ने हम लोगों को परामर्श दिया कि अतीत से संदेश तो लें कि कहां कहां गलतियां हुईं लेकिन भविष्य के लिये हमें वर्तमान का तानाबाना बुनना चाहिये आचार्य जी ने परामर्श दिया कि हम लोग बच्चों पर ध्यान दें उनमें संस्कार विकसित करें तब पीढ़ी का निर्माण होता है |
गीता में
यदा यदा हि धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत । अभ्युत्थानमधर्मस्य तदाऽऽत्मानं सृजाम्यहम् ।।4.7।।
परित्राणाय साधूनां विनाशाय च दुष्कृताम् । धर्मसंस्थापनार्थाय संभवामि युगे युगे ।।4.8।।
का उल्लेख करते हुए आचार्य जी ने कहा धर्म का संस्थापन चिन्तन और चर्चा का विषय है
मानव -धर्म, सृष्टि -धर्म क्या है? आदि जानें परमात्मा भी धर्म से बंधा हुआ है किं
तद्ब्रह्म किमध्यात्मं किं कर्म पुरुषोत्तम । अधिभूतं च किं प्रोक्तमधिदैवं किमुच्यते ।।8.1।।
अर्जुन ने पूछा -वह ब्रह्म क्या है,अध्यात्म क्या है? और कर्म क्या है? अधिभूत नाम से और अधिदैव नाम से क्या कहा गया है? इन सबका उत्तर देते हुए भगवान् कृष्ण अर्जुन को विश्वास दिलाते हैं कि -
यद्यद्विभूतिमत्सत्त्वं श्रीमदूर्जितमेव वा । तत्तदेवावगच्छ त्वं मम तेजोंऽशसंभवम् ।।10.41।।
महाप्रभु वल्लभाचार्य, महाप्रभु चैतन्य की ओर संकेत करते हुए आचार्य जी ने कहा कि ये सब हमारा इतिहास है इतिहास केवल गांधी जी तक सीमित नहीं है इस इतिहास को धर्म पुराण मानकर त्याग देंगे तो हमारा विकास अवरुद्ध हो जायेगा हमें इनका अध्ययन करना चाहिये और अपने विचार का प्रसार भी करना चाहिये यशस्वी होने पर भी हम लोग तपस्विता न त्यागें इसका सदैव ध्यान रखें |