प्रस्तुत है ध्यानतत्पर आचार्य श्री ओम शंकर जी का सदाचार संप्रेषण :-
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प्रतिदिन की यह सदाचार वेला आचार्य जी के अनुभवों पर आधारित है इसलिये हमें इसका श्रवण कर अधिक से अधिक लाभ लेने का प्रयास करना चाहिये आचार्य जी ने बताया कि भैया आशुतोष कर्ण जी बैच 2002 बहुत से प्रश्नों के उत्तर पाने के लिये भविष्य में आचार्य जी से भेंट करेंगे | समाज और व्यक्ति दोनों का संयोजन और समन्वय अपने जीवन को किस प्रकार प्रेरित प्रभावित प्रतिष्ठित कर सकता है यह जानने का हम प्रयास करेंगे इस समय चुनाव चल रहे हैं समाजोन्मुखी जीवन जीने वाले बहुत से लोग मनोयोगपूर्वक लोगों को प्रेरित प्रोत्साहित कर रहे हैं ताकि अधिक से अधिक उनको मत जायें जो भारतीय जीवन पद्धति का विकास करना चाहते हैं भारतीय जीवन शैली, भारतीय चिन्तन, भारतीय विचार, भारतीय जीवनदर्शन इन शब्दों के साथ बहुत अन्याय हुआ है प्राणिक चेतना भौतिक प्राणवायु को संचालित करती है अपानवायु के विकृत होने पर प्राणवायु का शीर्ष पक्ष हिलने लगता है यानि अपान के क्षेत्रों को बाहर जाना ही चाहिये जीवन प्रारम्भ होते ही विकार दूर होने चाहिये ताकि हमारे अन्दर की ऊर्जा में वृद्धि हो विकार भरते रहेंगे तो ऊर्जा रुक जायेगी विकारों से निवृत्ति आवश्यक है विकारों को पचाने से शरीर शिथिल हो जाता है हम अब इसको समाज से संयुत कर लें समाज में व्याप्त कुरीतियों को समाप्त करने के लिये हम भजन कीर्तन चिन्तन मेले करते रहे हैं लेकिन जैसे ही हमें आलस्य ने घेरा समाज में विकारों की बहुतायत हो गई” विकृत वर्ग के विकृत विचार को हम जितना भी पचाने का प्रयास करेंगे हम रुग्ण होते जायेंगे आचार्य जी ने बताया भैया अमित गुप्त जी ने उन्हें कभी तीन पुस्तकें भारत विभाजन के गुनहगार, विषैला वामपंथ, गीता रहस्य दीं थी एक ओर ये पुस्तकें हैं तो दूसरी ओर ऐसी पुस्तकें छप रही हैं जो हम पढ़ेंगे तो मन को विकृत कर देंगी आचार्य जी ने जगन्नाथ पण्डितराज के बारे में बताया कि उन्होंने कैसे विकृति फैलाई |