प्रस्तुत है दत्तहस्त आचार्य श्री ओम शंकर जी का सदाचार संप्रेषण
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जब आदि शंकराचार्य का जन्म हुआ तो उस समय अत्यन्त विषम परिस्थितियां थीं l शंकराचार्य, रामानुजाचार्य,
निम्बार्काचार्य, मध्वाचार्य सभी दक्षिण भारत के हैं और अत्यन्त महत्त्वपूर्ण हैं l इन्होंने जन्म दक्षिण में लिया लेकिन उत्तर तक अपनी भक्ति से प्रभावित किया उत्तर दक्षिण का कोई भेदभाव नहीं l संपूर्ण देश हमारी भारतमाता है और इस देश से प्रेम करने वाले हमारे भाई बन्धु हैं l इस देश की समुन्नति, वैभव,विकास, सामर्थ्य,शक्ति, क्षमता, योग्यता,पात्रता संपूर्ण संसार के लिये अमृतमयी है देश मात्र भूमि का टुकड़ा नहीं है l मूल रूप से राष्ट्र भावना का प्रादुर्भाव आत्मीयता से होता है l ईश्वरत्व का प्रादुर्भाव भी आत्मीयता से होता है l परमात्मा विभु है हमारा रक्षक है प्रेरक है सब कुछ है आत्म और परमात्म के संबन्ध का माध्यम भक्ति के रूप में देश भी बन जाता है इस भाव और भक्ति के साथ जब हम अपना जीवन यापन करते हैं तो हम प्रशंसित हो ही जाते हैं हमें युग भारती परिवार को इस संपूज्य भाव से विकसित पल्लवित करना चाहिये कि हम भी भारत मां की संतान हैं |
हेरत हेरत हे सखी, रह्या कबीर हिराई। बूँद समानी समद में , सो कत हेरी जाइ॥
(आत्मा और परमात्मा का भेद समाप्त,यह भक्ति की एक ऐसी अवस्था है जब सभी भ्रम मिट जाते हैं ) की व्याख्या करते हुए
आचार्य जी ने बताया कि बूंद और समुद्र का अद्भुत संबन्ध है इस भाव को भाषा में व्यक्त करने के लिये अनेक कवियों विचारकों दर्शनिकों ने भारतभूमि में अवतरण लेकर हमारा कल्याण किया है l वास्तव में हम सौभाग्यशाली हैं संकटों का निवारण आज तक चल रहा है निराशा की भाषा न बोलें व्यथा का भाव न लायें आजीवन संघर्षरत रहें इतनी उथल पुथल के बाद भी भारत वर्ष उसी स्वरूप में है हम जहां हैं जैसे हैं जिस स्थिति में हैं राष्ट्र भाव से ओत प्रोत होकर अपने विचार व्यवहार से राष्ट्र भावित शक्ति को जाग्रत करें, संगठित होने के महत्त्व को समझें शौर्य का विस्मरण न हो |