प्रस्तुत है शक्न आचार्य श्री ओम शंकर जी का सदाचार संप्रेषण
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यह सदाचार संप्रेषण आत्मविश्वास, आत्मचिन्तन, आत्मशक्ति, आत्माभिव्यक्ति और आत्मबोध की निर्धारित दिशा की ओर उन्मुख है परमात्मा ने तो हमारे अन्दर अपार शक्ति दी है लेकिन हम उसे भूले रहते हैं अर्थ से ही संयुत रहकर हम अपना जीवन व्यर्थ में गंवा देते हैं यह अत्यन्त आश्चर्य का विषय है कि संसार तभी सृजित होता है जब परमात्मा विकारी होता है l हम यूं ही विकसित नहीं हो गये हम बड़े से बड़े काम आसानी से कर लेते हैं और पता भी नहीं चलता इसके उदाहरणस्वरूप आचार्य जी ने सन् 1995 में रजत जयन्ती के कार्यक्रम की तैयारियों की चर्चा की आचार्यजी ने STATUE OF EQUALITY की चर्चा की l विशिष्टाद्वैत वेदान्त के प्रवर्तक रामानुजाचार्य का जन्म सन् 1017 में हुआ था l लगभग तीन सौ वर्ष बाद प्रयाग में सन् 1400 में रामानन्दाचार्य का जन्म हुआ स्वामी रामानंद को मध्यकालीन भक्ति आंदोलन का महान संत माना जाता है। उन्होंने रामभक्ति की धारा को समाज के प्रत्येक वर्ग तक पहुंचाया। वे पहले ऐसे आचार्य हुए जिन्होंने उत्तर भारत में भक्ति का प्रचार किया। उनके बारे में प्रचलित कहावत है कि - द्रविड़ भक्ति उपजौ-लायो रामानंद। यानि उत्तर भारत में भक्ति का प्रचार करने का श्रेय स्वामी रामानंद को जाता है। स्वामी जी ने बैरागी सम्प्रदाय की स्थापना की, जिसेे रामानन्दी सम्प्रदाय के नाम से भी जाना जाता है। भक्ति संसार को चलाने का एक प्रबल दृढ़ विश्वास है भारतवर्ष परमात्मा की लीला स्थली है आचार्य जी ने नाभादास की भक्तमाल पढ़ने की सलाह दी भक्तों की एक बहुत लम्बी सूची है अपने कार्यों से इन्होंने बहुत जागरण किया विकार हर जगह आते हैं संसार अछूता नहीं रह सकता है प्राणिक मोह ईश्वर के प्रति प्रेम है l मनुष्यत्व का भाव अन्दर आ जाये तो कहना ही क्या आत्मानुभूति का प्रयास करें अपनी संस्कृति के प्रति अगाध प्रेम रखिये |