प्रस्तुत है चित्तज्ञ आचार्य श्री ओम शंकर जी का सदाचार संप्रेषण :-
https://sadachar.yugbharti.in , https://t.me/prav353
इस लोक में माता पिता का संरक्षण वास्तव में बहुत बड़ा संरक्षण है l कल भैया अभय गुप्त जी बैच 1977 की माता जी के निधन का समाचार पाकर हम लोगों को अत्यन्त दुःख हुआ मां की मृत्यु पर उस व्यक्ति के दुःख का वर्णन नहीं किया जा सकता जिसने उसकी कोख से जन्म लिया हो उसकी गोद के संपर्क में रहा हो ममता,दुलार, प्यार से आप्लावित रहा हो और जिन्हें पीड़ा नहीं हो तो वो पाषाण हैं वो मनुष्य नहीं हैं मात्र प्राणी हो तो वो संबंध भूल जाता है मनुष्य संबंध नहीं भूलता और जो मनुष्य जितने अधिक संबंधो का निर्वाह कर ले जाता है उसका मनुष्यत्व उतना ही सनाथ हो जाता है इस तरह के दुःखों के निवारण के लिये हमारे यहां आचार व्यवहार की विधि व्यवस्था बताई गई है हमारे हिन्दू धर्म की जीवनशैली की मरता है कि हम जराजीर्ण होकर इस शरीर का त्याग कर देते हैं वासांसि जीर्णानि यथा विहाय नवानि गृह्णाति नरोऽपराणि।
तथा शरीराणि विहाय जीर्णा न्यन्यानि संयाति नवानि देही ।।2.22।।
हमारी देह में देही अवस्थित है और उस देही की अनुभूति होने पर हम देह से उसी तरह प्रेम करते हैं जिस तरह हम अपने घर, वस्तु आदि से प्रेम करते हैं अपने सनातन धर्म के नियमों का पालन करते हुए अन्तिम संस्कार आदि करें अभी जो चुनाव चल रहे हैं उसमें हम लोग चाहते हैं कि वह विचार चुनकर आये जो भारतीय विचार दर्शन है दीनदयाल जी व्यक्ति के चुनाव के पक्षधर नहीं थे आचार्य जी ने देशाचार, लोकाचार और सदाचारी जीवन को परिभाषित किया हमें सब प्रकार के सत् का आभास है तो आचरण उसके अनुकूल करेंगे हमारा आत्म एक सत्य है अनन्त ज्ञान सत्य है आचार्य जी ने पद्मपुराण गरुण पुराण के छन्दों का उल्लेख करते हुए सत्य को परिभाषित किया आचार्य जी अपने अभिभावकत्व का निर्वाह आज भी इसलिये कर रहे हैं ताकि हम लोग भटक न जायें |