प्रस्तुत है सदोत्थायिन् आचार्य श्री ओम शंकर जी का सदाचार संप्रेषण
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कल ZOOM पर आयोजित युगभारती साप्ताहिक विमर्श बैठक के अन्तर्गत विषय था अखंड भारत जिसमें आचार्य जी के अतिरिक्त भैया विवेक भागवत भैया आशीष जोग भैया आशुतोष कर्ण भैया मनीष कृष्णा ने अपने विचार रखे अखंड भारत की परिकल्पना करते समय एक विराट् चित्र हमारे सामने प्रस्तुत होता है हिन्दू धर्म कोश में भारत का विस्तार से विवरण है और पौराणिक ग्रंथों में भी भारत वर्ष की महिमा, स्वरूप,स्थिति और उसमें निवास करने वाले लोगों का जीवन बहुत सुकून देने वाला है उस भारत वर्ष का भाव जिनके मन में है वे इसे भोग भूमि और एक टुकड़ा नहीं समझते भाव भूमि मझते हैं जहां से भावभूमि की समझदारी प्रारम्भ होती है अध्यात्म का उद्भव वही है सारा संसार शान्ति और सुख के साथ जीवन जीने का प्रयत्न करता है भारत भूमि ने यहां के ऋषियों में यह भाव उत्पन्न किया कि मनुष्य के लिये चार पुरुषार्थ हैं धर्म अर्थ काम मोक्ष धर्म का अर्थ बताते हुए आचार्य जी ने कहा किराये के मकान से अपने मकान तक जाने की प्रक्रिया ही मोक्ष है
वासांसि जीर्णानि यथा विहाय नवानि गृह्णाति नरोऽपराणि।
तथा शरीराणि विहाय जीर्णा न्यन्यानि संयाति नवानि देही ।।2.22।।
परा अपरा का ज्ञान मनुष्य को सुकून देने का आधार बन जाता है और यह सब भारत भूमि में उद्भूत हुआ है विकसित हुआ है l यहां के लोग अमरत्व की उपासना इस परिवर्तनशील शरीर में ही करते रहें हैं इसलिये भारतवर्ष हमारा उपास्य है हम इसके उपासक हैं हम खंडित मूर्ति की पूजा नहीं करते है पूर्ण मूर्ति हमारे मन मस्तिष्क में विराजमान रहती है भारतवर्ष की अखंडता का यही भाव हमारे मन में रहता है रहना चाहिये इसीलिये हमें एक अखंड भारत का चित्र लगाना चाहिये शरणागत की रक्षा की है मैंने अपना जीवन देकर ये भाव भाषा में परिवर्तित होकर व्यवहार में आते हैं तब अखंड भारत की रिकल्पना अपने जीवन को आनन्द देती है और अपने कार्य को उत्साह देती है राजनीति में अशुद्धता की चर्चा करते हुए आचार्य जी ने बताया कि दीनदयाल जी विचार को मत (VOTE ) देने के पक्षधर थे लेकिन इस उथल पुथल के दौर में हम अपनी ज्योति जलाये रखें ऊर्जा का क्षरण न करें |