तीर्थे तीर्थे निर्मलं ब्रह्मवृन्दं। वृन्दे वृन्दे तत्त्वचिन्तानुवादः॥
वादे वादे जायते तत्त्वबोधः। बोधे बोधे भासते चन्द्रचूडः॥
(रम्भा शुक संवाद) प्रस्तुत है प्रेरक आचार्य श्री ओम शंकर जी का सदाचार संप्रेषण :-
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विद्यालय में भैया प्रवीण भागवत और भैया चावली रमेश (दोनों बैच 1986)आचार्य जी से आग्रहपूर्वक तर्क वितर्क करते थे l आचार्य जी को यह बहुत अच्छा लगता था इसी प्रकार भैया आशीष जोग आजकल सृष्टि के विकासवाद पर आचार्य जी से चर्चा कर रहे हैं विषय गम्भीर और चिन्तनयुक्त है लेकिन भारतवर्ष प्राचीन काल से आत्मा,परमात्मा, रचना,रचनाकार आदि की व्याख्या चर्चा आनन्दमग्न होकर करता रहा है प्रातःकाल हम लोग धरती मां के पैर छूते हैं तर्कवादी कहेगा धरती मां के पैर कहां हैं किन्तु हम लोगों ने धरती मां का, पर्वतों का,जल का, वायु का, वृक्षों आदि का अर्थात् सृष्टि के सूक्ष्म और स्थूल स्वरूपों का मानवीकरण कर उन्हें पूजा है विश्लेषणात्मक चिन्तन करने वाले जिज्ञासुओं में भाव कम विचार अधिक होते हैं भाव और विचार के संतुलन के उदाहरणस्वरूप एक प्रसंग आचार्य जी ने बताया कि अपने विद्यालय में BORING (THE ACT OF DRILLING ) से पहले पूजा करने से सफलता कैसे मिली मानव जीवन भाव विचार और क्रिया के संतुलन से संतुलित होता है पौरुष पराक्रम का भाव मन में रखें निराशावादी न बनें ...पतवार चलाते जायेंगे मंजिल आयेगी आयेगी अद्भुत प्रतिभा प्रकांड विद्वत्ता वाले स्वामी दयानन्द सरस्वती ने बहुत कम आयु में ही इतना बड़ा काम कर दिया कि दिशा ही बदल गई l और उन्हें विष दे दिया गया इसी तरह दीनदयाल जी की हत्या कर दी गई | यह इस देश का स्वभाव बन गया है विप्र धेनु धरती सभी देवरूप हैं| हम लोग अंशी के अंश हैं प्रातःकाल यह भाव हमारे अन्दर आना ही चाहिये कि हम मनुष्य हैं और विजय प्राप्त करने के लिये आये हैं संघर्षों में समाधान हमारे पास है हर प्रयास का कुछ न कुछ परिणाम होता है इसके लिये आचार्य जी ने दीनदयाल जी का एक प्रसंग बतायाविकार पर प्रहार करें विचार का संपोषण करें निराश न हों यह सदाचार संप्रेषण शौर्य कर्म चिन्तन उत्साह की वृद्धि के लिये है |