दुष्टदस्युचोरादिभ्यः साधुसंरक्षणं धर्म्मतः। प्रजापालनं धनुर्वेदस्य प्रयोजनम्॥
(अर्थ : दुष्ट, दस्यु (लुटेरे), चोर आदि से धर्मपूर्वक साधुओं (सज्जनों) की रक्षा करना और प्रजा का पालन करना धनुर्वेद का उद्देश्य है।) प्रस्तुत है सेतुभेदिन् आचार्य श्री ओम शंकर जी का सदाचार संप्रेषण :-
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नई पीढ़ी में एक भ्रम उत्पन्न हो गया है कि धर्म पूजा पाठ की विधि है और एक दूसरा भ्रम यह कि हम अहिंसा प्रेम और आत्मीयता के माध्यम से इस संसार में सुखी रह सकते हैं युद्ध संघर्ष असभ्य अविकसित लोगों का काम है और इस प्रकार वे लोग कुण्ठित विचार व्यक्त करते रहते हैं इसी कारण उनका व्यवहार भी कुण्ठित हो जाता है हमें इतिहास के गर्भ में जाकर देखना चाहिये EMERGENCY के बारे में जानना चाहिये हमारी जिज्ञासा इतिहास के अन्य पन्नों में भी होनी चाहिये आचार्य जी हमेशा शौर्य प्रमण्डित अध्यात्म पर जोर देते हैं l भारतवर्ष की विद्वत्ता खंडित विद्वत्ता नहीं है पूजा पाठ की विद्वत्ता नहीं है मधुसूदन सरस्वती एक बहुत चर्चित नाम है l ये शाहजहां के समय के थे l ये अद्वैत सम्प्रदाय' के प्रधान आचार्य, कई ग्रंथों के लेखक और अत्यधिक विद्वान तपस्वी ज्ञानी सिद्ध दण्डी संत थे l आपने यजुर्वेद के उपवेद धनुर्वेद पर आधारित प्रस्थानभेद नामक उच्चस्तरीय ग्रन्थ लिखा है इस ग्रन्थ के अनुसार आयुध चार प्रकार के कहे गए हैं—मुक्त, अमुक्त, मुक्तामुक्त, और यंत्रमुक्त । मुक्त आयुध, (जैसे चक्र) अमुक्त आयुध (जैसे, खड्ग), मुक्तामुक्त (मुक्त भी, अमुक्त भी , जैसे, भाला, बरछा)। मुक्त को 'अस्त्र' तथा अमुक्त को 'शस्त्र' कहते हैं। हम जब अपने को अर्थप्रधानता से संयुत कर लेते हैं तो लगता है इन सबके अध्ययन की हमें क्या आवश्यकता है हमें अपना व्यक्तित्व चिन्तनपरक बनाना चाहिये चुनाव में अपनी विचारधारा के लोगों को जिताना भी पौरुष पराक्रम का कार्य है निष्पक्ष लोग कभी कभी कायर भी होते हैं परिमार्जित चिन्तन का कुछ वजन होता है सात्विक चिन्तन की हर समय आवश्यकता है अपनी संस्कृति की रक्षा के लिये गीता प्रेस बहुत अच्छा काम कर रही है हमें शौर्य युक्त अध्यात्म के चिन्तन और अभ्यास की आवश्यकता है संगठन का महत्त्व समझें