जो कल गया वह सदा सुवासित लतान्त है तभी तो रहें न रहें हम महका करेंगे..... प्रस्तुत है कार्पटिक आचार्य श्री ओम शंकर जी का सदाचार संप्रेषण :-
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प्रतिदिन आचार्य जी अपने सात्विक और उपादेय भाव संप्रेषित करते रहते हैं संसार का स्वभाव परस्परावलम्बन का है पुत्र माता पिता भाई पास पड़ोस समाज देश विश्व सृष्टि स्रष्टा एक दूसरे से संयुत होते चलते हैं सृष्टि की उत्पत्ति कैसे होती है? भैया आशीष जोग के इस प्रश्न पर आचार्य जी ने हम लोगों को विष्णु पुराण को देखने की सलाह दी l इसी तरह गीता के चौथे अध्याय में भी इसका उत्तर है |
अजोऽपि सन्नव्ययात्मा भूतानामीश्वरोऽपि सन्। प्रकृतिं स्वामधिष्ठाय संभवाम्यात्ममायया।।4.6।।
यद्यपि मैं अजन्मा और अविनाशी हूं और सभी प्राणियों का ईश्वर हूं इसके बाद भी अपनी प्रकृति को अपने अधीन रखकर मैं अपनी माया से जन्म लेता हूं आचार्य जी ने कल विद्यालय में संपन्न हुए युग भारती के प्रशिक्षण शिविर की चर्चा की ये अच्छा विचार था यह विचार सृष्टि के संरक्षण के लिये है और हम भारतीयों का भाव है कि इस सृष्टि का मूल केन्द्र विन्दु हम हैं और हम ही क्षरित हो जायेंगे पतित हो जायेंगे तो सारा सृष्टि चक्र अस्त व्यस्त हो जायेगा हमारा सौभाग्य है कि हम भारत में जन्मे हैं हमारी उन्मुखता अध्यात्म की ओर है जन्म कर्म च मे दिव्यमेवं यो वेत्ति तत्त्वतः। त्यक्त्वा देहं पुनर्जन्म नैति मामेति सोऽर्जुन।।4.9।। हे अर्जुन ! मेरे जन्म एवं कर्म दिव्य हैं। इस प्रकार (मेरे जन्म और कर्म को) जो मनुष्य तत्त्व से जान लेता अर्थात् दृढ़तापूर्वक मान लेता है, वह शरीर - त्याग कर पुनर्जन्म को प्राप्त नहीं होता, मुझे प्राप्त होता है। हम इसीलिये शावास्यमिदं सर्वं..कहते हैं हमें परिवार और परिवेश से संस्कार मिले उसी परिवेश का संरक्षण और संवर्धन हमारा लक्ष्य है इसीलिये हमने शिक्षा स्वास्थ्य सुरक्षा और स्वावलंबन पर चिन्तन किया आचार्य जी ने लता मंगेशकर की भी चर्चा की आचार्य जी ने कवि प्रदीप के बारे में एक बहुत रोचक बात बताई आत्मशक्ति द्वारा विचारशील कर्म करते चलें मृदु भाषा का प्रयोग करें |