राम राज बैठे त्रैलोका। हरषित भए गए सब सोका।।
बयस न कर काहू सन कोई। राम प्रताप विषमता खोई।।
प्रस्तुत है अद्वयायुधीय आचार्य श्री ओम शंकर जी का सदाचार संप्रेषण हम मनुष्य संयमी, पराक्रमी, पुरुषार्थी हैं यह हमारी प्रकृति है लेकिन सामान्य मनुष्य प्रायः किसी समस्या पर आपदा पर व्याकुल परेशान हो जाते हैं मानव-जीवन के रूप में जो हमें उपहार मिला है उसे व्यर्थ न करें नित्य ध्यान चिन्तन मनन अध्ययन स्वाध्याय अपने आत्म को उत्थित करने के लिए अवश्य करें | जीवन में संयम की बहुत आवश्यकता है सिद्धान्तों को जब व्यवहार में ढालने का प्रयास किया जाता है तो परमात्मा भी सहायता करता है बैरिस्टर साहब ने जीवनपर्यन्त सिद्धान्तों का पालन किया दीनदयाल विद्यालय स्वर्ण जयन्ती के अवसर पर कल विद्यालय में एक कार्यक्रम हुआ जिसमें प्रमुख रूप से मनीष कृष्णा जी, आलोक सांवल जी, चन्द्रमणि जी, मोहन जी,रोहित दुबे जी, विवेक सचान जी उपस्थित रहे आचार्य जी ने कहा कि मां सरस्वती की ही कृपा है कि हम लोग लिख पढ़ लेते हैं अपने अन्दर से निकले भावों की पूजा करें हमें बहुत विचारपूर्वक संभल कर चलना है आकर्षण हो भ्रम हो भय हो सभी के साथ सामञ्जस्य बैठाकर उत्तरकांड में तुलसीदास जी ने उच्च कोटि के दर्शन जीवन व्यवस्था आदि का समावेश किया भगवान् राम ने दशरथ को आश्वस्त किया कि उन्हें उनकी सेना नहीं चाहिए विश्वामित्र के आश्रम में ऐसे ही जाऊंगा | फिर समाज को संयुत किया भगवान् राम भीलों और ऋषियों के सेतु बने युद्ध में संघर्षरत होने पर भगवान् राम ने शंकाशील भाई और शंकाशील भक्त को संतुष्ट किया रामत्व को अपने अन्दर प्रवेश कराएं आत्मबोध की भी आवश्यकता है भय भ्रम न रहे संसार के संकटों का सामना करें (आप सभी श्रोताओं के सुझावों का स्वागत है )