प्रस्तुत है प्रह्लादन आचार्य श्री ओम शंकर जी का आज दिनांक 27/12/2021 (पौष कृष्ण अष्टमी ) { स्वामी विवेकानन्द द्वारा त्रिदिवसीय ध्यान का अन्तिम दिन (27 दिसंबर 1892 ) का सदाचार संप्रेषण ttps://sadachar.yugbharti.in/ https://youtu.be/YzZRHAHbK1w https://t.me/prav353
कल रविवार दिनांक 26 दिसम्बर को युग भारती ने बैच 96 का रजत जयन्ती सम्मान समारोह आयोजित किया था यद्यपि यह स्वार्थमय संसार है लेकिन यदि हमें यह अनुभूति हो जाए कि (श्वेताश्वतरोपनिषद् के षष्ठोऽध्याय में एको देवः सर्वभूतेषु गूढः सर्वव्यापी सर्वभूतान्तरात्मा। कर्माध्यक्षः सर्वभूताधिवासः साक्षी चेता केवलो निर्गुणश्च॥) मैं वही हूं जो आप हैं तो प्रेम आत्मीयता दिखने लगती है और आनन्द ही आनन्द आता है जैसा कल के कार्यक्रम में हुआ यह हमारी अमरता का प्रतीक है जब हम अपने को शरीर समझ लेते हैं तो परेशान होते हैं लेकिन शरीर समझना भी मजबूरी है आचार्य जी ने वेदान्त दर्शन ब्रह्म सूत्र (हरि कृष्ण गोयंका जी ) की चर्चा की इसमें सामान्य जनों को समझ में आ सकने वाली व्याख्या है वर्तमान में जीवित रहने का अभ्यास करना चाहिए वर्तमान यदि सहयोग चाहता है तो हमें सहयोग करना चाहिए संघर्ष चाहता है तो संघर्ष, ध्यान धारणा चाहता है तो ध्यान धारणा की ओर उन्मुख होना चाहिए | लेकिन यदि कर्म के लिए स्नान ध्यान धारणा त्यागने के लिए प्रेरित कर रहा है तो उसे त्यागना चाहिए शरीर हमारा साधन है और इसे सक्षम भी होना चाहिए कर्म कर्तव्य का ध्यान रखें कहीं मनुष्य का कर्तव्य सेवा है तो कहीं युद्ध कहीं ध्यान -धारणा,कहीं मनुष्य का कर्तव्य सेवा के विपरीत उस मनुष्य को नष्ट करने का है जो राष्ट्र विरोधी है ये दर्शन के सिद्धान्त हैं हमारा ग्रन्थागार अत्यधिक तात्त्विक है इस ओर रुझान करें युग भारती हम लोगों का उत्तम उत्पाद है जिस कारण से विद्यालय अस्तित्व में आया उसी तरह युगभारती भी अस्तित्व में आई क्योंकि बूजी ने कहा था एक दीनदयाल गया है मैं अनेक दीनदयाल बनाऊंगी दीनदयाल जी की तरह सादगी, संयम, शील,संकल्प, स्वाध्याय, विचार, त्याग आदि का हमारे अन्दर भी प्रवेश हो हमें परमात्मा से यही मांगना है इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने भैया दीपक शर्मा जी( बैच 1981), भैया अमित गुप्त जी (बैच 1989), भैया मनीष कृष्णा (बैच 1988) की चर्चा क्यों की, वायु -भक्षण कौन करता है, किसने कहा था मूंछे लगा लगा कर आ जाते हो पहचानेंगे कैसे आदि जानने के लिए सुनें