प्रस्तुत है निर्णिक्तमना आचार्य श्री ओम शंकर जी का सदाचार संप्रेषण आचार्य जी ने भैया श्री राजेश मल्होत्रा (बैच 1975) आदि के सहपाठी रहे भैया श्री राघवेन्द्र सिंह जी (बैच 1975) का परिचय दिया और उनके पिता जी का एक प्रसंग बताया आचार्य जी ने बताया कि श्री राघवेन्द्र जी इटकुटी गांव (पिनकोड 209831)(थाना अजगैन) उन्नाव में एक फार्महाउस बनवा रहे हैं l शौर्यप्रमण्डित अध्यात्म पर आचार्य जी बहुत अधिक जोर देते हैं ज्ञान एक ऐसा आधार है जिसके ही आधार पर वैदिक संहिताओं (संहिता =सम्यक् रूप से जिसका संग्रहण किया गया ) की संरचना हुई और इसमें विद्याएं संयुत होती गईं इन सबको को प्रसारित करने वाला व्यक्त करने वाला अध्यापक कहलाया ऋषियों ने भाषा का संस्कार करते समय उपसर्ग और प्रत्यय लगाए परमात्मा ने ऋषियों को सीधे ज्ञान प्रेषित किया मैकाले यदि हम लोगों को प्रेत लगा तो हम अपनी प्रेत -विद्या से उसे भगा सकते थे जिस प्रकार श्री त्रिदंडी स्वामी (22 अप्रैल 1905 - 2 दिसंबर 1999) ने एक स्थान पर प्रेत बाधा को दूर किया था l आचार्य जी ने अध्यापक शब्द,अध्यात्म शब्द और आश्रम शब्द की व्याख्या की भानु जी दीक्षित ने आश्रम’ शब्द की व्याख्या इस प्रकार की है: आश्रम अर्थात् जिसमें ठीक प्रकार से श्रम किया जाए अथवा आश्रम जीवन की वह स्थिति है जिसमें कर्तव्यपालन के लिए पूर्ण परिश्रम किया जाए। आश्रम का अर्थ ‘अवस्थाविशेष’ ‘विश्राम का स्थान’, ‘ऋषिमुनियों के रहने का पवित्र स्थान’ आदि भी किया गया है। सांस लेना भी एक श्रम है l किसी न किसी रूप में हम सब अध्यापक हैं हमें जीवन की समस्याओं को खोजने का प्रयास करना चाहिए | प्रसिद्ध दर्शनशास्त्री मुनि सुन्दर ने ध्यात्मकल्पद्रुम में दार्शनिक प्रश्नों के उत्तर बहुत व्यवस्थित रूप से दिए हैं l इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने भैया संतोष मिश्र जी का नाम क्यों लिया, अनाश्रमी, पञ्चमहासंहिताएं, चातुराश्रमिक आदि क्या हैं जानने के लिए सुनें |