प्रस्तुत है आर्च आचार्य श्री ओम शंकर जी का सदाचार संप्रेषण शिक्षक को सतत सतर्क रहने की आदत पड़ जाती है कि कोई व्याकरणिक दोष न हो और यदि हम अपने को शिक्षक मानते हैं तो वाणी और व्यवहार का नियमन अत्यन्तआवश्यक है आचार्य जी सदैव हम लोगों को सुयोग्य शिक्षक बनाने के लिए उद्यत रहते हैं ताकि समाज हम लोगों से शिक्षार्थी के रूप में बहुत कुछ प्राप्त कर सके शिक्षक के रूप में हमें अपना खानपान,,वाणी, उचित व्यवहार का भी ध्यान रखना होगा ताकि गरिमा बनी रहे शिक्षक के प्रति जब भावात्मक संबन्ध जुड़ जाता है तो वह माता और पिता दोनों हो जाता है आचार्य जी ने इसके लिए एक प्रसंग सुनाया जिसमें रामधारी सिंह दिनकर ( रामधारी सिंह का जन्म 23 सितम्बर 1908 ई. में बिहार प्रान्त के बेगुसराय जिले के सिमरिया घाट गाँव में हुआ था और मृत्यु 24 अप्रैल 1974 को चेन्नई में हुई ) ने अपने शिक्षक को भूखा देखकर अश्रुपात किया था शिक्षकत्व अत्यन्त गम्भीर गुरुतर भार है और हमारे समाज से जब शिक्षकत्व लांछित हो गया तो स्थितियां विषम हो गईं शिक्षा के कारण ही बहुत सी समस्याएं पैदा हुईं और शिक्षा में ही इनका निदान भी है पञ्चम वेद महाभारत में विदुर का धृतराष्ट्र से संवाद भी पढ़ने लायक है युद्ध छिड़ने जा रहा है एक दृश्य है |
पाञ्चजन्यस्य निर्घोषं देवदत्तस्य चोभयोः श्रुत्वा सवाहना योधाः शकृन्मूत्रं प्रसुस्रुवुः || (MBH.6-1-18) इसी समय यह प्रवचन चल रहा है |
संनियम्येन्द्रियग्रामं सर्वत्र समबुद्धयः। ते प्राप्नुवन्ति मामेव सर्वभूतहिते रताः।।12.4।।
धर्म के दस लक्षण और पतञ्जलि के अष्टांगयोग की ओर संकेत करते हुए आचार्य जी ने बताया धारणा ध्यान समाधि को मिलाकर संयम कहते हैं आपने धारणा, ध्यान और समाधि शब्द की व्याख्या की आचार्य जी ने शर्मा जी और गुरु जी के प्रसंग बताए पहले स्वयं आन्तरिक शुचिता, व्यवस्था की ओर ध्यान दें और फिर सिखाएं हमारे संगठन से लोग भयभीत हों प्रभाव प्रदर्शित हो स्वाध्याय पर भी आचार्य जी ने जोर दिया |