प्रस्तुत है निवृत्तकारण आचार्य श्री ओम शंकर जी का सदाचार संप्रेषण कार्यक्रम एक आधार है एकत्र होने का, विचार को आगे बढ़ाने का, योजनाओं को व्यवहार में परिवर्तित करने का इसी तरह का एक कार्यक्रम कल सरौंहां में सम्पन्न हुआ जिसमें सुन्दरकांड का पाठ,यज्ञ,प्रसाद वितरण, परस्पर का संवाद, विचार, प्रश्नोत्तर, प्रार्थना, पूजा का समावेश रहा कल भी आचार्य जी ने उसी बात को दोहराया कि निस्पृह भाव से भारत माता के चरणों में अपनी सारी शक्ति बुद्धि बल विवेक को समर्पित करना ही हमारा परम साध्य है यह देश हम लोगों के रोम रोम में राम के रूप में विद्यमान है लेकिन अनेक बार लोगों को भ्रम और भय होते रहते हैं तो बाल कांड के एक प्रसंग को इङ्गित करते हुए आचार्य जी ने बताया कि संसार में जिसके भ्रम और भय छूट जाते हैं वह परम आनन्द को प्राप्त करता है यह अद्भुत संसार है गीता में --
ये यथा मां प्रपद्यन्ते तांस्तथैव भजाम्यहम् । मम वर्त्मानुवर्तन्ते मनुष्याः पार्थ सर्वशः।।4.11।।
हे पार्थ ! जो भक्त जिस प्रकार मेरी शरण लेते हैं, उनको मैं उसी प्रकार आश्रय देता हूँ क्योंकि सभी लोग सब प्रकार से मेरे पथ का अनुकरण करते हैं।
श्रीमद्भागवत् में अकामः सर्वकामो व मोक्षकाम उदारधीः | तीव्रेण भक्तियोगेन यजेत पुरुषं परम् ||
“मनुष्य चाहे निष्काम हो या फल का इच्छुक या मुक्ति का इच्छुक ही क्यों न हो, उसे पूरे सामर्थ्य से भगवान्की सेवा करनी चाहिए जिससे उसे पूर्ण सिद्धि प्राप्त हो सके, जिसका पर्यवसान कृष्णभावनामृत में होता है |” तीव्र भक्तियोग का भाव कस्मात् नहीं आ जाता है आचार्य जी ने भक्तमाल पढ़ने की सलाह दी हमें मनुष्य का शरीर मिला है यही कम कमाल की बात नहीं है भाव और भक्ति में रहने वाले मनुष्य कुछ देर ही सही लेकिन आनन्द में रहते हैं शरीर के अ्यास से प्रारम्भ करके भक्ति में रमने पर हमें आनन्द मिलेगा रास्ते में आनन्द लेते हुए लक्ष्य प्राप्त करने का प्रयत्न करें |