प्रस्तुत है कृतविद्य आचार्य श्री ओम शंकर जी का सदाचार संप्रेषण मनुष्य स्थूल और सूक्ष्म दोनों के सामञ्जस्य का सेतु है सूक्ष्म जितना अदृश्य है उतना ही शक्तिमान है स्थूल जितना दृश्य है उतना ही शक्तिशून्य लेकिन अपने स्वरूप से भारी है इसलिये हमारी भारतीय संस्कृति स्थूल से सूक्ष्म की यात्रा का एक सोपान गढ़ती चलती है| इसी सूक्ष्म अभ्यास के लिए गीता का छठा अध्याय ध्यानयोग है इसमें आप लोग 26 वें से 30 वें श्लोक पढ़ें |
यतो यतो निश्चरति मनश्चञ्चलमस्थिरम्। ततस्ततो नियम्यैतदात्मन्येव वशं नयेत्।।6.26।।
यह चञ्चल अस्थिर मन जहाँ-जहाँ विचरण करता है, वहाँ-वहाँ से हटाकर इसे एक परमात्मा में ही लगाएं ।
प्रशान्तमनसं ह्येनं योगिनं सुखमुत्तमम् । उपैति शान्तरजसं ब्रह्मभूतमकल्मषम्।।6.27।।
जिसके सब पाप नष्ट हो गये हैं, जिसका रजोगुण और मन निर्मल हो गया है, ऐसे ब्रह्मस्वरूप योगी को निश्चित
ही सात्त्विक सुख प्राप्त होता है।
युञ्जन्नेवं सदाऽऽत्मानं योगी विगतकल्मषः। सुखेन ब्रह्मसंस्पर्शमत्यन्तं सुखमश्नुते।।6.28।।
इस प्रकार स्वयं को सदा परमात्मा में लगाता हुआ पापरहित योगी अत्यन्त सुख को प्राप्त हो जाता है।
सर्वभूतस्थमात्मानं सर्वभूतानि चात्मनि। ईक्षते योगयुक्तात्मा सर्वत्र समदर्शनः।।6.29।।
सर्वत्र अपने स्वरूप को देखने वाला और ध्यानयोग से युक्त योगी अपने स्वरूप को सम्पूर्ण प्राणियों में स्थित देखता है और सम्पूर्ण प्राणियों को अपने स्वरूप में देखता है।
तो इससे होगा यह कि यो मां पश्यति सर्वत्र सर्वं च मयि पश्यति। तस्याहं न प्रणश्यामि स च मे न प्रणश्यति।।6.30।।
जो सब में मुझे देखता है और सबको मुझमें देखता है, उसके लिये मैं अदृश्य नहीं होता और वह मेरे लिये अदृश्य नहीं होता । यह भारतीय भाव है इस दूरस्थ कार्यक्रम का हमें लाभ उठाना चाहिए WhatsApp पर आए एक संदेश को इङ्गित करते हुए आचार्य जी ने बताया कि पत्रकारिता यदि केवल अपनी कुण्ठाओं की अभिव्यक्ति है तो पत्रकारिता न होकर अपने विकारों का वमन है दोगले भाव के लोगों की यही दशा होती है मूल भारतीय है लेकिन चिन्तन ओढ़ा हुआ है और वो इसके दुराग्रही हैं शक्ति बुद्धि वाणी धन से हम भारत मां की सेवा में तत्पर रहें हमें कौन सी बात कहां कहनी जो प्रभावशाली हो इसका भी हम लोग ध्यान रखें आज अपने गांव सरौंहांमें सुन्दरकांड का पाठ है आप सब लोग सादर आमन्त्रित हैं इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने एक सज्जन नबी बक्श जी की चर्चा की जिन्होंने आचार्य जी को गोद में खिलाया, दैनिक जागरण के श्री नरेन्द्र मोहन जी की भी चर्चा की, सदाफल क्या होता है? आदि जानने के लिए सुनें |