प्रस्तुत है विपश्चित्आ चार्य श्री ओम शंकर जी का सदाचार संप्रेषण ब्रह्मवेला, ब्राह्मी स्थिति,ब्रह्मानुभूति आदि शब्द सात्विक मन को बहुत बल देते हैं राजसिक लोगों को प्रेरणा देते हैंऔर तामसिक के लिए बोझ होते हैं | यह हमारी संस्कृति के वाहकों का चिन्तन और अनुभव है कि हम लोग पूर्वकृत कर्मों के फलों का आस्वादन कर रहे हैं हम लोग सात्विक जीवन व्यतीत करते हुए आवश्यकता होने पर आवेश को भी प्रदर्शित करते रहते हैं प्रायः कुण्ठित मन से वर्तमान को कोसना परमात्मा के विधान का अपमान है हमें यह अनुभव करना चाहिए कि जो भी रिस्थितियां हैं वो हमारे कर्मानुसार हमारे सामने आती जायेंगी और उनसे संघर्ष करने की हमारी मनोभूमिका बनाई गई है टी वी पर हम लोग देख सकते हैं कि तार्किकता के साथ भ्रमात्मक स्थितियों को कैसे सच साबित किया जाता है चाहे वो तंबू गाड़कर प्रदर्शन का हो या अन्य कुछ हम तत्त्वबोध और आत्मबोध को साथ साथ लेते हुए जीवन की यात्रा को पूरा करते हैं मनुष्य जाति में प्रकृति का घालमेल है मनुष्य भिन्न प्रकार के आवरण ओढ़ कर चलता है लेकिन यदि वह मनुष्यत्व को जान ले तो देवता से उठकर रमात्मस्थिति तक पहुंच सकता है| मनुष्य जीवन साधना का आधार है|
शानदार था भूत, भविष्यत्भी महान है अगर संभाले उसे आप जो वर्तमान है यह गणेश शंकर विद्यार्थी जी के अखबार वर्तमान में प्रतिदिन निकलता था इसी तरह स्वतन्त्र भारत में पाञ्चजन्य बजाते हुए भगवान कृष्ण दिखाये जाते थे वर्तमान को न कोसें बल्कि मार्ग निकालें अर्जुन मोहग्रस्त हो गए कि पितामह पर बाण कैसे चलाएं तो भगवान् श्रीकृष्ण ने डांटा श्रेयान्स्वधर्मो विगुणः परधर्मात्स्वनुष्ठितात्। स्वधर्मे निधनं श्रेयः परधर्मो भयावहः।।3.35।।
स्वधर्म क्या है इस पर विचार करें यदि हम शिक्षक हैं तो शिक्षकत्व स्वधर्म है 41 तक छन्द पढ़ने की आचार्य जी ने सलाह दी ममत्व लिए, विश्वासयुक्त हुए और विचारों की उदात्तता लिए हुए अध्यापकत्व को आप लोग भी प्राप्त करें ऐसी आचार्य जी प्रार्थना कर रहे हैं | इस समाज में जहां विकार ही विकार हैं विचारों को खोजें इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने अश्विनीउपाध्याय और जगद्गुरु स्वामी रामभद्राचार्य जी के video, माधवीलता शुक्ला जी, पत्रकार अमिताभ अग्निहोत्री जी की चर्चा क्यों की कल्याण पत्रिका का वो कौन सा प्रेरणादायी लेख था जानने के लिए सुनें |