प्रस्तुत है कृतागम आचार्य श्री ओम शंकर जी का (पौष कृष्ण षष्ठी ) {स्वामी विवेकानन्द द्वारा त्रिदिवसीय ध्यान का प्रथम दिन (25 दिसंबर 1892 ) कन्याकुमारी में समुद्र के मध्य में स्थित चट्टान पर बैठ कर स्वामी विवेकानन्द ने 25 से 27 दिसंबर तक ध्यान लगाया था । } का सदाचार संप्रेषण https://sadachar.yugbharti.in/, ttps://youtu.be/YzZRHAHbK1w, https://t.me/prav353
स्थान : उन्नाव
यह सदाचार वेला प्रेरणा,शक्ति, भक्ति,विचार प्राप्त करने का और दिन भर की योजनाओं के लिए अपने अन्दर उत्साह भरने का माध्यम है कोई भी काम कर पाना किसी अदृश्य शक्ति के हाथ में रहता है इसी का नाम साक्षी भाव है गीता में बारहवें अध्याय, जो श्रद्धेय बैरिस्टर साहब का बहुत प्रिय अध्याय था, से |
यस्मान्नोद्विजते लोको लोकान्नोद्विजते च य:। हर्षामर्षभयोद्वेगैर्मुक्तो य: स च मे प्रिय: ।।15।।
जिससे कोई भी जीव उद्वेग को प्राप्त नहीं होता और जो स्वयंs भी किसी जीव से उद्वेग को प्राप्त नहीं होता तथा जो हर्ष, अमर्ष
(जलन), भय और उद्वेग आदि से रहित है- वह भक्त भगवान् को प्रिय है।
अनपेक्षः शुचिर्दक्ष उदासीनो गतव्यथः। सर्वारम्भपरित्यागी यो मद्भक्तः स मे प्रियः।।12.16।।
17,18,19 को उद्धृत करते हुए आचार्य जी ने बताया कि परमात्मा हमारे अन्दर है और कोई हमें अपमानित कर रहा है पीड़ित कर रहा है तो प्रकारान्तर से वह परमात्मा भी तो पीड़ित होगा राम चरित मानस से जब जब होई धरम की
हानि। बाढ़हि असुर अधम अभिमानी। करहिं अनीति जाइ नहिं बरनी । सीदहिं बिप्र धेनु सु र धरनी ॥
तब तब प्रभु धरि बिबिध सरीरा । हरहिं कृपानिधि सज्जन पीरा ॥
की विस्तृत व्याख्या में आचार्य जी ने बताया कि गायों के कटने से पूरा विश्व चीत्कारों से भर रहा है तो शान्ति व्याप्त कैसे होगी विप्र धेनु और सुर जब पीड़ित हो रहे हैं तो धरती मां पीड़ित हो रही है और आपने दोहन और शोषण में अन्तर बताया मनुष्य में विकार आया संतुलन बिगड़ने से हमारा तो नुकसान हुआ ही हमने संपूर्ण परिवेश को भी पीड़ित कर दिया लेकिन मनुष्य ही प्रशिक्षित हो सकता है | आचार्य जी शिक्षक के रूप में हम लोगों को जो बताते हैं उसे हम लोग विश्वास के कारण सुनते हैं हमें एक दूसरे पर विश्वास है इस परस्पर के सहअस्तित्व के भाव को ॐ सह नाववतु। सह नौ भुनक्तु।
सह वीर्यं करवावहै । तेजस्विनावधीतमस्तु मा विद्विषावहै ॥ ॐ शान्तिः शान्तिः शान्तिः
में भी व्यक्त किया गया है जिसे हम लोग मात्र भोजन मन्त्र समझ बैठे हैं देखा जाए तो सारा विश्व शिक्षक और शिक्षार्थी भाव से भरा हुआ है | हम एक दूसरे के सहयोग से संस्कारों को ग्रहण करते हुए समाज की सेवा का संकल्प करें इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने एडवोकेट रणविजय सिंह जी की चर्चा क्यों की आदि जानने के लिए सुनें |