प्रस्तुत है क्षान्त आचार्य श्री ओम शंकर जी का सदाचार संप्रेषण संसार है संसार में समस्याएं आती हैं और उनके समाधान के लिए प्रयत्नशील हुआ जाता है और अपने साथी सहयोगियों का सहयोग लेकर आगे फिर जीवनयात्रा प्रारम्भ हो जाती है और जो अध्यात्म का संस्पर्श करते हैं वो कहते हैं जो करता है परमात्मा करता है और परमात्मा सब अच्छा ही करता है और इसके अन्तिम भाग परमात्मा सब अच्छा ही करता है को आत्मसात् करने में अत्यधिक अभ्यास की आवश्यकता होती है सभी को यश की कामना होती है व्यवसाय को करते हुए यशस्विता को प्राप्त करने की व्यवसायी को प्रच्छन्न कामना रहती है और यह कामना जब भावों में बदल जाती है और भाव उदात्त हो जाते हैं तो उनके अन्दर कुछ वैशिष्ट्य आ जाता है |
जो विद्यार्थी विद्यालय के छात्रावास में रहे हैं वो प्रातःस्मरण करते थे |
अश्वत्थामा बलिर्व्यासो हनुमांश्च विभीषणः। कृपः परशुरामश्च सप्तैते चिरजीविनः॥
सप्तैतान्सं स्मरेन्नित्यं मार्कण्डेयमथाष्टमम्। जीवेद्वर्षशतं सोपि सर्वव्याधिविवर्जित।।’
(आचार्य जी चिरजीविता के बारे में कल विस्तार से बताएंगे )
अर्जुन के प्रश्न ब्रह्म क्या है अध्यात्म क्या है तो भगवान् श्रीकृष्ण का उत्तर है |
अक्षरं ब्रह्म परमं स्वभावोऽध्यात्ममुच्यते। भूतभावोद्भवकरो विसर्गः कर्मसंज्ञितः।।8.3।।
परम अक्षर (अविनाशी) तत्त्व ब्रह्म है, स्वभाव (अपना स्वरूप) अध्यात्म कहा जाता है,भूतों के भावों को उत्पन्न करने वाला विसर्ग (यज्ञ प्रेरक बल) कर्म नाम से जाना जाता है।। गीता मानस देखकर आनन्दित हो जाना यह भाव बना रहे तो हमें संसार में जीने का सलीका और साहस दोनों मिल जाते हैं ज्ञान वह जो समय पर काम दे जाए भाव वह जो समय पर उठ जाए विचार वह जो समय पर कारगर हो जाए कर्म वह जो समय पर क्रियाशील हो जाए तो हमें पश्चात्ताप नहीं होगा इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने भैया डा उमेश्वर जी भैया राजेश मल्होत्रा जी भैया मुकेश गुप्त जी की चर्चा क्यों की स्वामी रामतीर्थ क्या कहते थे आदि जानने के लिए सुनें |