प्रस्तुत है धूतगुण आचार्य श्री ओम शंकर जी का सदाचार संप्रेषण आप किसी एक विषय पर अपने मानस को केन्द्रित कर लें चाहे वह वस्तु पर हो तत्त्व पर हो व्यक्ति पर हो या सिद्धान्त आदि पर हो तो ध्यान केन्द्रित करने पर अपने अन्दर के विचारों का विकास प्रारम्भ हो जाता है और इसके अभ्यास की आवश्यकता हैl ध्यान योग के लिए गीता का छठा अध्याय है बहुत सारे ग्रंथ तो हीन मानसिकता के चलते नष्ट कर दिये गये उसके बाद भी काफी ग्रन्थ सुरक्षित हैं क्योंकि हम श्रुति के अनुयायी हैं हम सदैव संघर्षशील रहे हैं | हमें हिन्दू क्यों कहा जाता है इसके लिए आचार्य जी ने बताया कि सबसे पहले हिन्दू शब्द का प्रयोग तन्त्र शास्त्र (जो शिव प्रणीत है )के एक ग्रन्थ मेरुतन्त्रम् (इसमें 35 प्रकाश हैं ) में हुआ है हिन्दू दो शब्दों को मिलाकर बना है हीन और दूष अर्थात् हीन वृत्तियों को नष्ट करने वाले को हिन्दू कहा जाता है | राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने आग्रहपूर्वक हिन्दू शब्द को ग्रहण किया रज्जू भैया ने कहा था आज हमें आग्रही हिन्दू बनना है | हम लोग संस्कार पर विश्वास करते हैं संस्कार के लिए भी शक्ति की आवश्यकता होती है लेकिन स्नेह की सलिला के साथ हमारा युगधर्म शक्ति उपासना है शक्ति भारत -भक्ति के साथ विचार उदात्त व्यवहार के साथ भाव राष्ट्र के साथ गीता और मानस का अध्ययन तो करें लेकिन स्वाध्याय भी साथ में हो जब हमें स्वयं उत्तर मिलने लगेंगे तो हमारा अध्ययन सार्थक होगा | हमारा भाव सदा भारत मां के चरणों में समर्पित करने का बना रहना चाहिए आचार्य जी ने कश्मीर पर हमले के समय राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के त्याग की चर्चा की आचार्य जी ने Emergency की भी चर्चा की |