हमको नकली भूगोल बदलना होगा प्रस्तुत है धौतात्मन् आचार्य श्री ओम शंकर जी का सदाचार संप्रेषण आचार्य जी ने आई आई टी कानपुर में भूतपूर्व प्रोफेसर और विद्यालय की प्रबन्धकारिणी समिति के सदस्य रहे धूपड़ जी का एक प्रसंग छेड़ते हुए बताया कि आयु के सोपानों में जो संभल कर नहीं चलता उसका क्रोध उसके लिए बहुत हानिकारक होता है धीरे धीरे हमें भी अपने क्रोध को शमित करना चाहिए |
धृति: क्षमा दमोऽस्तेयं शौचमिन्द्रियनिग्रह:। धीर्विद्या सत्यमक्रोधो दशकं धर्मलक्षणम् ll
में धर्म का अन्तिम लक्षण अक्रोध है हमें कब क्रोध करना और कब क्रोध नहीं करना इसका विवेचन हमारे बीच होना चाहिए आचार्य जी ने गीत मैं लिखता नहीं हूं में पृष्ठ 17/18 पर लिखी अपनी कविता मैं विद्रोही सुनाई मैं धारा के विपरीत चला विद्रोही हूं.....और पृष्ठ 23/24 पर लिखी कविता उद्बोधन सुनाई रिसते घावों का दर्द यही दुहराता.... हम लोगों ने समाज जगाने का काम लिया है अतः प्रातःकाल प्रतिदिन आचार्य जी का संबोधन सुनने का हमारा उद्देश्य यही होना चाहिए कि यह हमारे अन्दर ऊर्जा बनकर प्रविष्ट हो जिससे हमारी फसल लहलहाए और ये विचार केवल शोभा बनें तो काम नहीं चलेगा ये विचार हमारे अन्दर ऊर्जा शक्ति भारतभक्ति संकल्प संयम को प्रविष्ट कराएं तब काम चलेगा स्थान स्थान पर संगठितशक्ति का प्रयास करें l