प्रस्तुत है प्रवण आचार्य श्री ओम शंकर जी का सदाचार संप्रेषण परमात्मा की अद्भुत लीला है कि मनुष्य के सामने अनेक बार विभिन्न प्रकार की उलझाव वाली परिस्थितियां सामने आ जाती हैं और कभी-कभी सब कुछ आनन्द में चलता है |
सोइ जानइ जेहि देहु जनाई । जानत तुम्हहि तुम्हइ होइ जाई ॥
तुम्हरिहि कृपाँ तुम्हहि रघुनंदन । जानहिं भगत भगत उर चंदन ॥
यह भक्ति का भाव है और ज्ञान का भाव सोऽहं अहं ब्रह्मास्मि है तमिलनाडु में सैन्य हेलिकॉप्टर दुर्घटना में चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ जनरल बिपिन लक्ष्मण सिंह रावत उनकी पत्नी मधुलिका रावत समेत कुछ अन्य लोगों की मृत्यु से पूरा राष्ट्र हिल गया | तुलसी जसि भवितव्यता तैसी मिलई सहाइ आपुनु आवइ ताहि पहिं ताहि तहां ले जाइ। -जैसी भवितव्यता होती है
वैसी ही सहायता मिलती है। या तो वह सहायता अपने आप स्वयं आ जाती है या वह व्यक्ति को, वहां ले जाती है। यह भाग्यवाद नहीं है यह संसार का सत्य है इस सदाचार के समय यह चिन्तन बहुत आवश्यक है दीप तारों के जलाकर कौन नित करता दिवाली अध्यात्म में हम इसी कौन के प्रश्न को सुलझाते रहते हैं चिरजीविता का अर्थ विस्तार से आचार्य जी
ने इस प्रकार बताया
अणोरणीयान् महतो महीयान् आत्मा गुहायां निहितोऽस्य जन्तोः ।
तमक्रतुं पश्यति वीतशोको धातुः प्रसादान्महिमानमात्मनः ॥ - श्वेताश्वतरोपनिषद् ३-२०
जो छोटी से छोटी इकाई है और बड़े से बड़े स्वरूप में वही विद्यमान है यह अनुभूति जहां हो जाती है चिरजीविता वहीं आ जाती है कई ऋषियों को चिरजीविता प्राप्त है जो स्रष्टा से सृष्टि तक का संयोग मिला लेता है वही चिरजीवी है मार्कण्डेय अमर हैं जितना प्राप्त हो रहा है यह परमात्मा की कृपा है अंशी होकर हम परमात्मा में विलीन हो जाते हैं इसके अतिरिक्त उत्तर प्रदेश के राज्यपाल रहे श्री विष्णुकान्त शास्त्री विद्यालय से क्यों जल्दी चले गये ? देवरहा बाबा का नाम आचार्य जी ने क्यों लिया आदि जानने के लिए सुनें |