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सामाजिक

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प्रवचन – अंश क्या तुम ध्यान करना चाहते हो? क्या तुम ध्यान करना चाहते हो? तो ध्यान रखना कि ध्यान में न तो तुम्हारे सामने कुछ हो, न पीछे कुछ हो। अतीत को मिट जाने दो और भविषय को भी। स्मृति और कल्पना–दो

प्रश्न-सार 1—परमात्मा मुझे कहीं भी दिखाई नहीं पड़ता है। मैं क्या करूं? 2–मैं संन्यास के लिए तैयार हूं। लेकिन यह कैसे जानूं कि परमात्मा ने मुझे पुकारा ही है? यह मेरा भ्रम भी तो हो सकता है! 3—कल आपने

प्रश्न-सार: 1—क्या मेरे सूखे हृदय में भी उस परम प्यारे की अभीप्सा का जन्म होगा? 2—आप वर्षों से बोल रहे हैं। फिर भी आप जो कहते हैं वह सदा नया लगता है। इसका राज क्या है? 3—मैं संसार को रोशनी दिखाना

प्रश्न-सार: 1—यह भाव निरंतर उभर आता है कि हो न हो भगवान बुद्ध ने आप ही के रूप में पुनरावतार लिया है। आप बुद्धक्षेत्र निर्मित कर रहे हैं। या कि आप लाओत्सु हैं, मैत्रेय भी नहीं? 2—मैं सुख को स्वीकार

प्रश्न-सार: 1—संन्यास का जन्म इस देश में हुआ, उसे गौरीशंकर जैसी गरिमा मिली, पर आज उसका सम्मान बस ऊपरी रह गया है। संन्यास और संन्यासी की अर्थवत्ता क्यों कर खो गई, कृपा करके समझाएं! 2—मैं क्या करूं?

प्रश्न-सार 1—तड़प ये दिन-रात की, कसक ये बिन बात की, भला ये रोग है कैसा? सजन, अब तो बता दे! अब तो बता दे, अब तो बता दे! तड़प ये दिन-रात की… 2—प्रेम पाप है? 3—आपका जीवन-दर्शन इतना सरल, सहज और सत्य

प्रश्न-सार- 1—बिन मांगे सच्चे रत्नों से झोली भर दी बिन चाहे मेरे जीवन में खुशियां भर दीं ये कैसे क्या कुछ हुआ, इसे कह दो भगवन अनहोनी थी जो बात, उसे होनी कर दी 2—प्रार्थना कैसे और कब जन्मती है? 3

प्रश्न-सार 1—मैं ध्यान करूं या भक्ति? और चूंकि कुछ तय ही नहीं हो पाता है, इसलिए प्रारंभ भी करूं तो कैसे करूं? 2—आपने एक प्रवचन में कहा था कि पुरुष के लिए "मैं-भाव' और स्त्री के लिए "मेरा-भाव' अर्था

प्रश्न-सार 1—तुम बसे नहीं इनमें आकर, ये गान बहुत रोए। कब तक बरसेगी ज्योति बार कर मुझको? निकलेगा रथ किस रोज पार कर मुझको? किस रोज लिए प्रज्वलित बाण आओगे? खींचते हृदय पर रेख निकल जाओगे? किस रोज त

प्रश्न-सार 1—संन्यास देकर आपने एक नया ही जीवन प्रदान किया है। सिर्फ एक ही कांटा चुभता है–इतनी सुविधा और सामीप्य होने पर भी मैं आपको पूरा का पूरा नहीं पी पा रहा हूं। अब दुई खलती है। अब मिटा ही डालें।

प्रश्न-सार 1—आपने वर्तमान प्रवचनमाला को नाम दिया: प्रेम-पंथ ऐसो कठिन! आप तो कहते हैं कि प्रेम होता है, किया नहीं जाता। फिर प्रेम का मार्ग कैसे बन सकता है? और वह कठिन कैसे हो गया? 2—प्रेम अव्याख्य क

प्रश्न-सार: 1—आपसे समाधि कैसे चुराएं? 2—मैं तो परमात्मा की याद बहुत करता हूं, लेकिन मन में प्रश्न उठता है कि परमात्मा भी कभी मेरी याद करता है या नहीं? 3—मैंने संसार के सब सुख-दुख को अनुभव कर देखा ह

1—एक कौतुक मैंने देखा: मेरी खोपड़ी में खंजड़ी बज रे लोल! क्या भक्त को अहंकार होता है? जहां ढूंढा, तो श्री हरि आपको ही पाया। 2—ध्यान की गहराई जैसे-जैसे बढ़ रही है, वैसे-वैसे प्राणों में जैसे अनेक गीत फू

प्रश्न-सार: 1—भारतीय संसद में फ्रीडम ऑफ रिलीजन बिल, धर्म-स्वातंत्र्य विधेयक लाया जा रहा है। ईसाई उसका विरोध कर रहे हैं। मदर टेरेसा ने भी उसका विरोध किया है। आप अपना मंतव्य दें। 2—संन्यास का भाव

प्रश्न-सार: 1—परमात्मा शब्द ही मेरी समझ में नहीं आता है। परमात्मा यानी क्या? 2—वैसे गत पंद्रह वर्षों से आप निरंतर प्रेरणा के स्रोत रहे हैं, परंतु यहां आपके ऊर्जा-क्षेत्र में रहते हुए कुछ माह में ही

प्रश्न-सार 1—साधु-संतों से सुना है कि भक्ति-मार्ग ही एकमात्र सरल और सुगम मार्ग है। लेकिन रहीम का प्रसिद्ध वचन है: रहिमन मैन तुरंग चढ़ि, चलिबो पावक माहिं। प्रेम-पंथ ऐसो कठिन, सब कोई निबहत नाहिं।। इ

दरबारों की दरबारी से,मार-काट मचा रहे।मानव अब हुआ मूल्यहीन हैमानव तन को नोच रहे।।समय वह पीछे छोड़ गया है,गिद्ध भी कीमत समझ गया है।।गुणहीन और धन युक्त हो,मानव मद में फूल गया है।।अपने को स्वामी समझकर,लाश

मेरा शहर  ( कहानी तीसरी किश्त)अब तक --पांच दिनों बाद युनूस की छ्ट्टी हो गई । वह उदय जी के साथ पन्जिम चला गया ।( इससे आगे )पन्जिम में  घर की देखभाल करना और  खाना पकाना उसके ज़िम्मे था । उ

नोट वोट का है बोलवाला,सत्ता का है खेल निराला।जिसके जेब में होते नोट,साथ में जिसके ज्यादा वोट।कुछ भी करके साफ बच जाए,साथ उसके सब हो जाए।चाहे कितनी भी करें करतूत काली,गवाह सबूत बन जाते जाली।नोट वोट का ल

चारों तरफ छाई हरियाली,,
आँखों को सुकून देती है,,
ठंडी ठंडी

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