इतना तो सह लिया है, इसको भी सह लूंगा।मुझे चाह नहीं किसी की, अकेला जी लूंगा।।लेट्स मि लिव एलोन, लेट्स मि लिव एलोन।इतना तो सह लिया है---------------------।।अपनों ने साथ छोड़ा, मजबूरी देखकर मेरी।यारों ने
भाई-बहिन का त्यौहार है भाईदूज।भाई- बहिन का प्यार है भाईदूज।।नहीं भूल जाना मेरे भाई यह त्यौहार।भाई- बहिन का सम्मान है भाईदूज।।भाई- बहिन का त्यौहार -----------------।।नहीं भूल जाना भाई, अपनी बहिन को।देन
चांद भी क्या खूब है, न सर पर घूंघट है, न चेहरे पे बुरका, कभ
स्त्री का प्यार सबके नसीब में नही होता वो जीवन में सिर्फ़ एक ही मर्द से दिल से प्यार कर पाती हैं , वो मर्द उसका प्रेमी हो या फिर पति वो टूट क़र जीवन में एक बार ही किसी मर्द को चाहती हैं।
आवो हम इस दीपावली पर।कुछ ऐसा करके दिखाये।।भूखे प्यासे जो हैं मानव।उनके घर हम दीवाली मनाये।।आवो हम इस --------------------।।भेद मिटाकर छोटे बड़े का हम।सबको बांटे अपनी खुशी हम।।कोई नहीं हो निराश और उदास।
क्या है अच्छा धर्म, क्या है बुरा धर्म।यह बताता है हमको, हमारा कर्म।।हम जीये और जीने दे सबको यहाँ।करें अच्छे कर्म, यही हमारा है धर्म।।क्या है अच्छा धर्म------------------।।इंसानों से नफरत, सिखाये जो हम
मतलब नहीं इससे हमको,कौन कैसा है यहाँ।दुनिया हमारी अलग ही है, कैसे हैं लोग यहाँ।।मतलब नहीं इससे हमको-----------------।।देख लिया है हमने, मोहब्बत यहाँ करके भी।निकले सभी मतलबी, मिला नहीं हमको कुछ भी।।हो
अब तक मैं मानता था,तुमको मेरा सच्चा प्यार,इसीलिए जता रहा था मैं,तुम पर मेरा अधिकार,और निभा रहा था मैं,तुमसे वफ़ा और वादें।अब तक मैं समझता था,तुमको अपनी इज्जत- शान,नहीं करता था पसंद मैं,तेरी बदनामी किसी
लोग कहते हैं कि,जहाँ नहीं पहुंचे रवि,वहाँ पहुंच जाता है,अपनी कलम से कवि।एक भेदी होता है कवि,कर देता है राज बेपर्दा,नहीं रहती सच्चाई छुपकर,सत्य को खोज ही लेता है कवि,नहीं होता वचनबद्ध किसी से,नहीं होता
मैं ज़मीन से जुड़ा, अकिंचन, अविरत हूं, अनुप्रास नहीं हूं,जैसा हूं अक्षरशः वैसा, अनुपूरक सम्भाष नहीं हूं।।कर्मण्येवाधिकारस्ते, में
मुझको नहीं मालूम,कि तुझमें क्या विशेष है,कि हटता नहीं है सच में,मेरा दिलो- दिमाग सोचने में,किसी और के बारे में कभी,क्यों सोचता हूँ मैं इतना,सिर्फ तेरे ही बारे में हमेशा।इसका कारण क्या होगा,शायद तेरी ख
तेरा साथ है तो, है हर मोड़ मंजिल,ये राहों के कंकड़ सताते नहीं हैं।जो है हाथ में हाथ तेरा सफर में तो, कभी दुःख के बादल भी छाते नहीं हैं।।न मैं दे सका तुझको जीवन सुनहरा,न तू
कसम खुदा की, नहीं होगी गलती ऐसी मुझसे।पहुंचे चोट तुमको जिससे, दर्द हो तुमको जिससे।।कसम खुदा की --------------------------।।करुंगा तुमसे बातें वही,जिनसे मिले खुशी तुमको।खिले रहे ये लब तेरे, नहीं हो तुम
रविवार... ?रविवार के सुखद पलों का आनन्द ले रहे हैं न।कैसा मौसम है आपके शहर- गाँव का।बरसात के क्या समाचार हैं।यहाँ केकड़ी में तो आज धूप खिली हुई है।गर्मी तो लग रही है लेकिन खिली हुई धूप अच्छी लग रही है
पढ़ीं किताबें कितनी हमने, पढ़े पत्र,अखबार,सब के सब निर्जीव,न पाया कुछ जीवन का सार।तुम पुस्तक हो ऐसी, जिसमें है जीवन संचार,तुम्हें पढ़ा तो पाया, बाकी सब कुछ था बेकार।।...मेरे सा
इतिहास में मीराबाई का नाम बड़े आदर और सत्कार से लिया जाता है मीराबाई मध्यकालीन युग की एक कृष्ण भक्त कवियित्री थी जिन्होंने श्री कृष्ण को प्राप्त करने के लिए भक्ति मार्ग चुना और हमेशा भजन तथा कीर्तन के
रानी दुर्गावती का जन्म 5 अक्टूबर सन 1524 को महोबा में हुआ था. दुर्गावती के पिता महोबा के राजा थे. रानी दुर्गावती सुन्दर, सुशील, विनम्र, योग्य एवं साहसी लड़की थी. महारानी दुर्गावती कालिंजर के राजा कीर्त
कि आज तुमसे तकरार हो मेरी,और कह दूं सारी बातें दिल की,ताकि तू खराब नहीं करें मेरा मूढ़,मगर तुम लगती हो बहुत प्यारी,करती है जब तुम वो शरारतें,जो पसंद है मुझको खराब मूढ़ में भी,और बदल जाता है मूढ़ मेरा।चाह
कैसे कितने चेहरे बदलकर, लोग यहाँ रहते हैं।मुहँ में राम बगल में छुरी,लिये हुए मिलते हैं।।कैसे कितने चेहरे बदलकर-----------------।।स्वार्थ अपना देखकर लोग, छोड़ देते हैं अपनों को।करके खून रिश्तों का भी, प
दुःखडा है सबका अपना अपना, तेरा दुःखडा कौन सुनेगा।अपना दुःखडा मत तू बता,दुःखडा तेरा मजाक बनेगा।।दुःखडा है सबका अपना अपना-------------------।।कौन चाहता है आँसू बहाना, मुसीबत में खुद को फंसाना।बर्ब